कम समय में प्रैक्टिकली ज्योतिष शास्त्र कैसे सीखे?
jyotish shastra kaise sikhe
गत्यात्मक ज्योतिष को अच्छी तरह समझने के लिए ज्योतिष के बेसिक्स का ज्ञान आवश्यक है। आज एक बार फिर से पहली कड़ी और पिछली कडी को आगे बढा रही हूं। हमारा सामना अक्सर कुछ वैसे लोगों से होता है , जो ऐसे तो कभी ग्रहों या ज्योतिष पर विश्वास नहीं करते , पर जब कभी लंबे समय तक चलने वाली किसी विपत्ति में फंसते हैं , ज्योतिष पर अंधविश्वास ही करने लगते हैं। ऐसी हालत में उनकी परेशानियां दुगुनी तिगुणी बढने लगती है ,अपनी समस्याओं में त्वरित सुधार लाने के लिए वे उस समय हम जैसों की अच्छी सलाह भी नहीं मानते।
ज्ञान हर प्रकार के भ्रम का उन्मूलन करती है , ज्योतिष को जानने के बाद आप स्वयं सही निर्णय ले सकते हैं। यही सोंचकर मै अधिक से अधिक लोगों को खेल खेल में ज्योतिष सीखलाने की बात सोंच रही हूं , आप सबों का सहयोग मुझे अवश्य सफलता देगा। वैसे लोगों को मेरी मदद हो जाएगी, जो सोचते हैँ कि ज्योतिष शास्त्र कैसे सीखे?
ज्योतिष में में पृथ्वी के सापेक्ष पूरे भचक्र का अवलोकण किया जाता है , साथ ही सूर्य के उदाहरण से समझने में सफलता मिली कि विभिन्न पिंड पृथ्वी सापेक्ष अपनी स्थिति के अनुरूप ही पृथ्वी पर प्रभाव डालते हैं।
चिन्तनशील विचारक पाठकों, आपके मन में ज्योतिष से सम्बंधित कोई भी प्रश्न उपस्थित हो , सकारात्मक तार्किक बहस के लिए हमारे व्हाट्सप्प ग्रुप (jyotish whatsapp group link) में आपका स्वागत है , क्लिक करें !
पहले ही लेख में चर्चा की गयी है कि पृथ्वी को स्थिर मानकर पूरे आसमान के 360 डिग्री को 12 भागों में बांटने से 30 - 30 डिग्री की 12 राशियां बनती है। आमान के 0 डिग्री से 30 डिग्री तक को मेष , 30 डिग्री से 60 डिग्री तक को वृष , 60 डिग्री से 90 डिग्री तक को मिथुन , 90 डिग्री से 120 डिग्री तक को कर्क , 120 डिग्री से 150 डिग्री तक को सिंह , 150 से 180 डिग्री तक को कन्या , 180 से 210 डिग्री तक को तुला , 210 से 240 डिग्री तक को वृश्चिक , 240 से 270 डिग्री तक को धनु , 270 डिग्री से 300 डिग्री तक को मकर , 300 से 330 डिग्री तक को कुंभ तथा 330 से 360 डिग्री तक को मीन कहा जाता है।
योगकारक ग्रह
हमारे ऋषि महर्षियों द्वारा आसमान के 0 डिग्री एक आधार को लेकर निश्चित किया गया था , पर कुछ ज्योतिष विरोधी हमारे ऋषि महर्षियों द्वारा आसमान के अध्ययन के लिए किए गए इस विभाजन को भी अवास्तविक मानते हैं , पर मेरे अनुसार यह विभाजन ठीक उसी प्रकार किया गया है , जिस प्रकार पृथ्वी के अध्ययन के लिए हमने आक्षांस और देशांतर रेखाएं खींची हैं।
जिस प्रकार भूमध्य रेखा से ही 0 डिग्री की गणना की जानी सटीक है तथा देशांतर रेखाओं की शुरूआत और अंत दोनो ध्रुवों पर करना आवश्यक है , उसी प्रकार आसमान में किसी खास विंदू से 0 डिग्री शुरू कर चारो ओर घुमाते हुए 360 डिग्री तक पहुंचाया गया है , हालांकि यह विंदू भी ज्योतिष में विवादास्पद बना हुआ है , जिसका कोई औचित्य नहीं। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण 24 घंटों में ये बारहों राशियां पूरब से उदित होती हुई पश्चिम में अस्त होती जाती है।
यूं तो ये बारहों राशियां और इनमें स्थित ग्रह हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं , पर तीन राशियां सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हैं। पहली, जिस राशि में बालक के जन्म के समय सूर्य होता है , वो उसकी सूर्य राशि कहलाती है। दूसरी, जिस राशि में बालक के जन्म के समय चंद्रमा होता है , वो उसकी चंद्र राशि कहलाती है। तीसरी, जिस राशि का उदय बालक के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर होता है, वह बालक की लग्न राशि कलाती है।
एक महीने तक सूर्य एक ही राशि में होता है , इसलिए एक महीने के अंदर जन्म लेने वाले सभी लोग एक सूर्य राशि में आ जाते हैं। ढाई दिनों तक चंद्रमा एक ही राशि में होता है , इस दौरान जन्म लेने वाले सभी लोग एक ही चंद्र राशि में आते हैं। दो घंटे तक एक ही लग्न उदित होती रहती है , इस दौरान जन्म लेने वाले सभी बच्चे एक ही लग्न राशि में आ जाते हैं। हमारे लेखों को पढ़कर ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त करें, कही भटकने और पूछने की आवश्यकता ही नहीं कि ज्योतिष शास्त्र कैसे सीखे?