First house astrology in Hindi
ज्योतिष में कुंडली के विभिन्न भावों का बहुत महत्व है। इस ब्लॉग के कुंडली भाव सेक्शन में आप सभी भावों के बारे में पढ़ रहे हैं। ज्योतिष में जन्मकुंडली का पहला भाव यानि लग्न का विशेष महत्व होता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में कुल 12 भाव होते हैं। हर भाव से जीवन के भिन्न भिन्न सन्दर्भों को देखा जाता है। जातक के जन्म के वक्त पूर्वी क्षितिज में कौन सी राशि और उस राशि में कितने सारे ग्रह उदित हो रहे थे, जन्मकुंडली का पहला भाव हमें बताता है।
यही कारण है कि योगकारक ग्रहों का विज्ञान नामक लेख में पहले भाव के स्वामी या उसमे मौजूद ग्रहों को +5 अंक दिए गए हैं। लेकिन योगकारकता के हिसाब से अधिक ही सही पर गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति के हिसाब से यह भाव भी कमजोर या महत्वपूर्ण हो सकता है। गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति को समझने के लिए गत्यात्मक ज्योतिष ने गणित ज्योतिष के अद्भुत गत्यात्मक सूत्र दिए हैं। उसी आधार पर गत्यात्मक ज्योतिष के अनुसार कुंडली देखने का तरीका भी बताया है।
परंपरागत ज्योतिष के अनुसार कुंडली के पहला भाव से व्यक्ति की शारीरिक बनावट और कद-काठी के बारे में पता चलता है। यह भाव व्यक्ति की आयु और सेहत को भी बतलाता है। है। गत्यात्मक ज्योतिष मानता है कि इस भाव से जातक के स्वास्थ्य और शारीरिक बनावट को ही नहीं, व्यक्तित्व को मजबूती देनेवाले सारे गुणों और जातक के आत्मविश्वास को भी देखा जा सकता है। इस तरह किसी भी व्यक्ति के स्वभाव को समझने के लिए लग्न का बहुत महत्व है।
गत्यात्मक ज्योतिष इस बात पर बल देता है कि किसी भी जन्मकुंडली को देखकर किसी भी ज्योतिषी के द्वारा शरीर की कद-काठी या रंग-रुप के बारे में कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं बतलाया जा सकता है , सिर्फ तुक्का लगानेवाली ही बात हो सकती है। हम सभी जानते हैं कि हर देश, हर प्रदेश में लोगों की शारीरिक बनावट में अंतर देखा जाता है , किन्तु सबकी कुंडली एक जैसी ही होती है। सबमें बारह खाने होते हैं तथा नवग्रहों की उसी में कहीं न कहीं स्थिति होटी है।
विकसित प्रदेशों में जन्म लेनेवाले बच्चे गोरे , लम्बे और सुंदर तथा अविकसित प्रदेशों में जन्म लेनेवाले काले , नाटे और कुरुप हो सकते हैं , दोष उनकी जन्मकुंडली में नहीं , वरन् जीन में है। इस तरह जब बच्चे के शारीरिक बनावट में युग , समय , वातावरण , परिवार आदि का महत्व है , तब फिर जन्मकुंडली के आधार पर किसी ऐसे सूत्र का निर्धारण करना काफी कठिन होगा , जिसके आधार पर यह मालूम किया जा सके कि किसी बच्चे का रंग-रुप कैसा है , कद-काठी कैसी है, नाक खडी है या चपटी, माथा चौड़ा है या पतला, कान बड़े हैं या छोटे, गरदन लम्बी है या छोटी, होठ पतले हैं या मोटे, जैसा बतला पाने का बहुत से ज्योतिषी दावा करते हैं।
तब प्रश्न यह उठता है कि आखिर जन्मकुंडली को देखकर शरीर के बारे में क्या बतलाया जा सकता है ? जबाब यह है कि शरीर के बारे में ऐसी महत्वपूर्ण बात बतलायी जाए, जो किसी भी युग में, किसी भी प्रदेश में, और किसी भी परिवार में अवश्यंभावी रुप से उपस्थित दिखायी पड़े। शरीर के मामले में ऐसे शब्द हैं , स्वास्थ्य और आत्मविश्वास, जिसके बारे में हम जन्मकुंडली देखकर सटीक भविष्यवाणी की जा सकती हैं।
किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा है या बुरा, अन्य व्यक्तिगत गुणों की वह प्रचुरता रखता हे या नहीं, शरीर पर उसका ध्यान-संकेन्द्रण है या नहीं, अपनी शारीरिक खूबियों की वजह से उसका आत्मविश्वास बना होता है या अपनी शारीरिक कमियों की वजह से उसके आत्मविश्वास में गिरावट आती है, अपनी शारीरिक खूबियो को उभारने के लिए तथा अपनी शारीरिक कमजोरियों को कम करने के लिए वह क्रियाशील रहता है या नहीं, यदि वह क्रियाशील हो , तो फिर उसका फायदा उसे मिलेगा या नहीं या क्रियाशीलता के बावजूद उसके हिस्से सिर्फ नुकसान ही रहेगा, इन सब बातों का जवाब दे पाना संभव है । साथ ही इस बात का भी उल्लेख कर पाना संभव है कि उपरोक्त प्रवृत्तियॉ किस काल में सर्वाधिक दिखायी पड़ेंगी ।
'गत्यात्मक ज्योतिष' आधारित धारणा पर संगीता पुरी की ई-पुस्तकों को प्राप्त करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें!