Kumbha lagna ki kundli
Kumbh lagn me chandra ka fal
आसमान के 300 डिग्री से 330 डिग्री तक के भाग का नामकरण कुंभ राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न कुंभ माना जाता है। कुंभ लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र षष्ठ भाव का स्वामी होता है और यह जातक के प्रभाव और रोग , ऋण , शत्रु जैसे हर प्रकार के झंझट का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए कुंभ लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर प्रभावित करने वाले संदर्भ किसी प्रकार के झंझट ही होते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों के समक्ष किसी प्रकार का झंझट उपस्थित नहीं होता , जो मन को खुश रखता है। जबकि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर कई तरह के झंझट उपस्थित होकर इनके मन को दुखी करते हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' चन्द्रमा की शक्ति का निर्णय इसके आकार के आधार पर करता है। अमावस के चन्द्रमा को शुन्य, दोनों अष्टमी के चन्द्रमा को 50 और पूर्णिमा के चन्द्रमा को 100 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है।
Kumbh lagna me surya ka fal
कुंभ लग्न की कुंडली के अनुसार समस्त जगत में चमक बिखेरने वाला सूर्य सप्तम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के घर गृहस्थी का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए अपने नाम यश को फैलाने के लिए कुंभ लग्न के जातक अपनी घर गृहस्थी को महत्व देते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के मजबूत रहने से इनके घर गृहस्थी का वातावरण और दाम्पत्य जीवन बहुत ही उत्तम कोटि का और अनुकरणीय होता है , जबकि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के कमजोर रहने इन्हें अपनी दाम्पत्य जीवन से कष्टकर समझौता करने को बाध्य होना पडता है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' में सूर्य को हर वक्त 50 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है, पर यह जिस ग्रह की राशि में होता है, उससे इन्हे गत्यात्मक शक्ति प्रभावित होकर थोड़ी धनात्मक या ऋणात्मक हो जाती है।
Kumbh lagna me mangal ka fal
कुंभ लग्न की कुंडली के अनुसार मंगल तृतीय और दशम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के भाई बहन , बंधु बांधव , पिता , समाज और पद प्रतिष्ठा का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातकों के परिवेश में भाई , बहन , बंधु बांधव , पिता , समाज सभी शामिल होते है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के मजबूत रहने पर भाई बंहन बंधु बांधवों से लेकर पिता समाज के सारे बुजुर्गों से इनके संबंध अच्छे बने होते हैं और इसके कारण प्रतिष्ठा के पात्र बनते हैं। विपरीत स्थिति में यानि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के कमजोर रहने पर भाई , बंधु , पिता , समाज या अन्य लोगों का कष्ट झेलने को इन्हे बाध्य होना पडता है , इनकी प्रतिष्ठा पर भी आंच आती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' मंगल की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में मंगल सूर्य के निकट हो तो मंगल को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और मंगल आमने सामने हो तो मंगल काफी कमजोर होता है।
Kumbh lagna me shukra ka fal
कुंभ लग्न की कुंडली के अनुसार शुक्र चतुर्थ और नवम भाव का स्वामी है और यह जातक के मातृ पक्ष और हर प्रकार की छोटी बडी संपत्ति , स्थायित्व के साथ साथ भाग्य आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए कुंभ लग्नवालों के हर प्रकार के संपत्ति का उनकी माता या भाग्य से संबंध बना होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र के मजबूत रहने पर कुंभ लग्नवाले माता या भाग्य के सहयोग से हर प्रकार की संपत्ति का सुख प्राप्त कर लेते हैं और स्थायित्व की मजबूती पाते हैं। पर जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र कमजोर हो तो मातृ पक्ष से कष्ट होता है , उनके साथ विचारों का तालमेल न होने से या भाग्य के साथ न देने से हर प्रकार के संपत्ति के सुख में बाधा आती है और स्थायित्व कमजोर दिखाई पडता है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शुक्र की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, शुक्र की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो शुक्र को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही शुक्र वक्री होता है तेजी से घटती हुई गत्यात्मक शक्ति शुन्य हो जाती है।
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Kumbh lagna me budh ka fal
कुंभ लग्न की कुंडली के अनुसार बुध पंचम और नवम भाव का स्वामी है और यह जातक के बुद्धि , ज्ञान संतान और जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातक अपनी बुद्धि का उपयोग हमेशा जीवनशैली को सुधारने के लिए करते हैं। यही कारण है कि हमारे देश में अधिकांश चिंतकों और विचारकों ने कुंभ लग्न में ही जन्म लिया था। ये ऐसी जीवनशैली पर विश्वास रखते हैं , जो आनेवाली पीढी को अधिक सक्षम बना सके। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों की अपनी बुद्धि , ज्ञान की मजबूती के साथ साथ संतान के मामलों की मजबूती भी देखने को मिलती है , इनकी जीवनशैली मजबूत होती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के कमजोर रहने पर जातक खुद तो दिमाग से कमजोर होता ही है , संतान पक्ष से भी बडी उम्मीद नहीं रख पाता और उसकी जीवनशैली में सुधार नहीं हो पाता। 'गत्यात्मक ज्योतिष' बुध की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, बुध की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो बुध को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही बुध वक्री होता है तेजी से घटती हुई इसकी गत्यात्मक शक्ति शून्य हो जाती है।
Kumbh lagna me guru ka fal
कुंभ लग्न की कुंडली के अनुसार बृहस्पति द्वितीय और एकादश भाव का स्वामी होता है और यह जातक के धन , कोष , लाभ के मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए कुंभ लग्न के जातकों के धन कोष का लाभ से और लाभ का धन कोष से संबंध बना होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के मजबूत होने पर कुंभ लग्न के जातक संसाधन वाले परिवार में जन्म लेते हैं , जिससे इन्हें लाभ को लेकर कोई चिंता नहीं होती। सतत लाभ से इनका कोष मजबूत बना होता है। इसके विपरीत , जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के कमजोर होने पर कुंभ लग्नवाले जातक के समक्ष संसाधन हीनता की स्थिति होती है , जिससे इनका लाभ प्रभावित होता है और इनके कोष पर बुरा प्रभाव पडता है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' गुरु की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में गुरु सूर्य के निकट हो तो गुरु को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और गुरु आमने सामने हो तो गुरु काफी कमजोर होता है।
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Kumbh lagna me shani ka fal
कुंभ लग्न की कुंडली के अनुसार शनि प्रथम और द्वादश भाव का स्वामी होता है यानि यह जातक के शरीर , व्यक्तित्व , खर्च और बाहरी संदर्भों आदि मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्नवाले जातकों की अपने स्वास्थ्य या व्यक्तित्व को मजबूती देने में अधिक से अधिक खर्च करने की प्रवृत्ति होती है । जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है , खर्च शक्ति के बने होने से और खाने पीने के सुख से आत्मविश्वास में बढोत्तरी होती है। पर जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के कमजोर रहने पर मकर लग्नवालों के स्वास्थ्य में कमजोरी बनी रहती है , खर्चशक्ति की कमी से आत्मविश्वास कमजोर होता है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शनि की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में शनि सूर्य के निकट हो तो शनि को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और शनि आमने सामने हो तो शनि काफी कमजोर होता है।
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