Tula lagna in hindi
(Horoscope of Libra in Hindi)
आसमान के 180 डिग्री से 210 डिग्री तक के भाग का नामकरण तुला राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न तुला माना जाता है। इस लेख में मैं तुला लग्न में ग्रहों का फल की जानकारी के बारे में लिख रही हूँ।
तुला लग्न में चंद्र का प्रभाव (Tula Lagna me Chandra ka prabhaw)
तुला लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र दशम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के पिता , समाज , पद प्रतिष्ठा आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए तुला लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले संदर्भ ये ही होते हैं। जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर पिता का भरपूर सुख और मन मुताबिक प्रतिष्ठा मिलने से तुला लग्न के जातक का मन खुश और जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर इनकी कमजोर स्थिति से इनका मन आहत होता है. 'गत्यात्मक ज्योतिष' चन्द्रमा की शक्ति का निर्णय इसके आकार के आधार पर करता है। अमावस के चन्द्रमा को शुन्य, दोनों अष्टमी के चन्द्रमा को 50 और पूर्णिमा के चन्द्रमा को 100 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है।
तुला लग्न में सूर्य का प्रभाव (Tula Lagna me Surya ka fal)
तुला लग्न की कुंडली के अनुसार समस्त जगत में चमक बिखेरने वाला सूर्य एकादश भाव का स्वामी होता है और यह जातक के लाभ , मंजिल आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए अपने नाम यश को फैलाने के लिए तुला लग्न के जातक अपने लाभ को मजबूत बनाने पर जोर देते हैं। नाम यश फैलाने के लिए ये अपनी मंजिल को बहुत मजबूत बनाने में दिलचस्पी लेते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के मजबूत रहने से लाभ और मंजिल की मजबूती से इनकी कीर्ति फैलती और जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में कमजोर सूर्य ओने से लाभ के मामलों में इनकी कीर्ति घटती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' में सूर्य को हर वक्त 50 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है, पर यह जिस ग्रह की राशि में होता है, उससे इन्हे गत्यात्मक शक्ति प्रभावित होकर थोड़ी धनात्मक या ऋणात्मक हो जाती है।
तुला लग्न में मंगल का प्रभाव (Tula Lagna kundali me mangal ka prabhaw)
तुला लग्न की कुंडली के अनुसार मंगल द्वितीय और सप्तम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के धन , कोष , घर गृहस्थी , ससुराल पक्ष आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातकों के घर गृहस्थी में धन का काफी महत्व होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के मजबूत रहने पर इनकी आर्थिक मजबूती से घर गृहस्थी का वातावरण बहुत अच्छा होता है , पत्नी पक्ष से या ससुराल से भी धन प्राप्त करने की संभावना बनी होती है। विपरीत स्थिति में यानि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के कमजोर रहने पर आर्थिक मामलों की कमजोरी घर गृहस्थी के मामलों को कमजोर बनाती है। ससुराल पक्ष का माहौल भी कमजोर बना होता है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' मंगल की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में मंगल सूर्य के निकट हो तो मंगल को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और मंगल आमने सामने हो तो मंगल काफी कमजोर होता है।
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तुला लग्न में शुक्र का प्रभाव (Tula Lagna celebrities)
तुला लग्न की कुंडली के अनुसार शुक्र प्रथम और अष्टम भाव का स्वामी है और यह जातक के शरीर , व्यक्तित्व , आत्मविश्वास और जीवनशैली आदि से संबंधित मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इनकी जीवनशैली से स्वास्थ्य और स्वास्थ्य से जीवनशैली का संबंध होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र के मजबूत रहने पर तुला लग्नवालों की जीवनशैली बहुत आरामदायक होती है , जिसके कारण इनका स्वास्थ्य अच्छा होता है। पर जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र के कमजोर रहने पर जीवनशैली की गडबडी के कारण तुला लग्नवालों के स्वास्थ्य में समस्याएं देखने को मिलती हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शुक्र की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, शुक्र की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो शुक्र को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही शुक्र वक्री होता है तेजी से घटती हुई इसकी गत्यात्मक शक्ति शून्य हो जाती है।
तुला लग्न में बुध का प्रभाव (Tula Lagna characteristics)
तुला लग्न की कुंडली के अनुसार बुध नवम और द्वादश भाव का स्वामी है और यह जातक के भाग्य , खर्च , बाहरी संदर्भों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातकों के भाग्य को मजबूती देने या कमजोर बनाने में खर्च तथा बाहरी संदर्भों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों का संबंध खर्चशक्ति की मजबूती के कारण दूर दूर तक बना होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के कमजोर रहने पर तुला लग्नवाले खर्च शक्ति की कमी के कारण अपने भाग्य को बहुत कमजोर मानते हैं। बाहरी संबंधों में भी बाधाएं आती हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' बुध की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, बुध की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो बुध को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही बुध वक्री होता है तेजी से घटती हुई इसकी गत्यात्मक शक्ति शून्य हो जाती है।
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तुला लग्न में गुरु का प्रभाव (Tula Lagna me Guru ka fal)
तुला लग्न की कुंडली के अनुसार बृहस्पति तृतीय और षष्ठ भाव का स्वामी होता है और यह जातक के भाई बहन , बंधु बांधव और झंझट भरे वातावरण का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए तुला लग्न के जातकों के भाई , बहन , बंधु बांधव का झंझट से संबंध बना होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के मजबूत होने पर तुला लग्न के जातकों को भाई बहन , बंधु बांधव का सुख प्राप्त होता है , जिससे प्रभाव की बढोत्तरी होती है। इसके विपरीत , जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के कमजोर होने पर तुला लग्नवाले जातकों को भाई , बहन बंधु बांधवों की कमजारियों को झेलने को विवश होना पडता है। इनसे झंझट होने की संभावना भी बहुत अधिक होती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' गुरु की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में गुरु सूर्य के निकट हो तो गुरु को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और गुरु आमने सामने हो तो गुरु काफी कमजोर होता है।
तुला लग्न में शनि का प्रभाव (Tula Lagna me Shani)
तुला लग्न की कुंडली के अनुसार शनि चतुर्थ और पंचम भाव का स्वामी होता है यानि यह जातक के मातृ पक्ष , हर प्रकार की संपत्ति , स्थायित्व , बुद्धि , ज्ञान और संतान जैसे मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्नवाले जातकों के अपनी या संतान पक्ष की पढाई लिखाई में मातृ पक्ष की भूमिका होती है , संतान के द्वारा स्थायित्व के मजबूत या कमजोर होने की संभावना बनती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों को माता से सुख प्राप्त होता है, खुद की सूझ बूझ अच्छी होती है , संतान पक्ष बहुत मजबूत स्थिति में होता है। पर जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के कमजोर रहने पर तुला लग्नवाले मातृ पक्ष के सुख में कमी , छोटी बडी संपत्ति का सुख न प्राप्त करने के कारण स्थायित्व की कमी तथा अपनी या बच्चों की पढाई लिखाई के मामलों में असफलता प्राप्त करते हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शनि की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में शनि सूर्य के निकट हो तो शनि को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और शनि आमने सामने हो तो शनि काफी कमजोर होता है।
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