Virgo ascendant Vedic astrology
Kanya lagna me chandra
आसमान के 150 डिग्री से 180 डिग्री तक के भाग का नामकरण कन्या राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न कन्या माना जाता है। कन्या लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र एकादश भाव का स्वामी होता है और यह जातक के लाभ , लक्ष्य और मंजिल आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए कन्या लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले संदर्भ ये ही होते हैं। जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर लाभ प्राप्ति की मजबूत स्थिति से कन्या लग्न के जातक का मन खुश और जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर इनकी कमजोर स्थिति से इनका मन आहत होता है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' चन्द्रमा की शक्ति का निर्णय इसके आकार के आधार पर करता है। अमावस के चन्द्रमा को शुन्य, दोनों अष्टमी के चन्द्रमा को 50 और पूर्णिमा के चन्द्रमा को 100 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है।
Kanya Lagna me grahon ka fal
कन्या लग्न की कुंडली के अनुसार समस्त जगत में चमक बिखेरने वाला सूर्य द्वादश भाव का स्वामी होता है और यह जातक के खर्च और बाहरी संदर्भों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए अपने नाम यश को फैलाने के लिए कन्या लग्न के जातक अपनी खर्च शक्ति को मजबूत बनाने पर जोर देते हैं। नाम यश फैलाने के लिए ये बाह्य संदर्भों को मजबूत बनाने में दिलचस्पी लेते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के मजबूत रहने से खर्चशक्ति और बाह्य संदर्भों की मजबूती से इनकी कीर्ति फैलती और जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के कमजोर रहने इनकी कमी से इनकी कीर्ति घटती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' में सूर्य को हर वक्त 50 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है, पर यह जिस ग्रह की राशि में होता है, उससे इन्हे गत्यात्मक शक्ति प्रभावित होकर थोड़ी धनात्मक या ऋणात्मक हो जाती है।
Kanya lagna me mangal ka fal
कन्या लग्न की कुंडली के अनुसार मंगल चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी होता है और यह जातक के भाई बहन , बंधु बांधव और जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातकों के भाई बहन , बंधु बांधवों का इनकी जीवनशैली से सहसंबंध होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के मजबूत रहने पर इन्हें भाई बंधुओं का सहयोग मिलता है , जिससे जीवनशैली मजबूत बनी होती है। विपरीत स्थिति में यानि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के कमजोर रहने पर भाई , बहन , बंधु बांधवों के सहयोग न मिलने या उनसे संबंधित तनाव के कारण जीवनशैली बहुत कमजोर दिखती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' मंगल की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में मंगल सूर्य के निकट हो तो मंगल को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और मंगल आमने सामने हो तो मंगल काफी कमजोर होता है।
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ज्योतिष के बारे में
Kanya lagna yogakaraka shukra ka fal
कन्या लग्न की कुंडली के अनुसार शुक्र द्वितीय और नवम् भाव का स्वामी है और यह जातक के भाग्य , धन आदि से संबंधित मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए किसी प्रकार के संयोग या दुर्योग का इनके धन से सहसंबंध होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र के मजबूत रहने पर कन्या लग्नवालों के धनविषयक मामलों में भाग्य मददगार सिद्ध होते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र के कमजोर रहने पर भाग्य की गडबडी के कारण जीवन में आर्थिक मामलों में बडी गडबडी देखने को मिलती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शुक्र की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, शुक्र की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो शुक्र को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही शुक्र वक्री होता है तेजी से घटती हुई गत्यात्मक शक्ति शुन्य हो जाती है।
Kanya lagna kundali in hindi budh ka fal
कन्या लग्न की कुंडली के अनुसार बुध प्रथम और दशम भाव का स्वामी है और यह जातक के स्वास्थ्य , व्यक्तित्व , आत्मविश्वास , पिता , पद प्रतिष्ठा , सामाजिक राजनीतिक मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातकों के आत्मविश्वास बढाने या घटाने में पिता और कैरियर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के मजबूत रहने पर ऐसे जातक अपने पिता की मजबूत स्थिति के बलबूते मजबूत आत्मविश्वास तथा इस मजबूत आत्मविश्वास के बल पर कैरियर को मजबूती देने में समर्थ होते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के कमजोर रहने पर कन्या लग्नवाले पिता की कमजोरी के कारण आत्विश्वास को कमजोर पाते हैं , स्वास्थ्य की गडबडी और कार्यस्थल पर मनोनुकूल वातावरण का अभाव भी इन्हें प्राप्त होता है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' बुध की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, बुध की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो बुध को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , दि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही बुध वक्री होता है तेजी से घटती हुई इसकी गत्यात्मक शक्ति शून्य हो जाती है।
Kanya lagna me guru ka fal
कन्या लग्न की कुंडली के अनुसार बृहस्पति चतुर्थ और सप्तम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के माता , हर प्रकार की संपत्ति , घर गृहस्थी का वातावरण का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए कन्या लग्न के जातकों के मातृ पक्ष या हर प्रकार की संपत्ति का उनके घरगृहस्थी से संबंध बना होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के मजबूत होने पर कन्या लग्न के जातकों को मातृ पक्ष तथा हर प्रकार की संपत्ति का सुख प्राप्त होता है , जिससे घर गृहस्थी का वातावरण मजबूत बना होता है। इसके विपरीत , जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के कमजोर होने पर कन्या लग्नवाले जातकों को मातृ पक्ष , हर प्रकार की संपत्ति और स्थायित्व की कमजोरी देखने को मिलती है , जिससे घर गृहस्थी की स्थिति कमजोर महसूस होती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' गुरु की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में गुरु सूर्य के निकट हो तो गुरु को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और गुरु आमने सामने हो तो गुरु काफी कमजोर होता है।
Kanya lagna me shani ka prabhaw
कन्या लग्न की कुंडली के अनुसार शनि पंचम और षष्ठ भाव का स्वामी होता है यानि यह जातक के बुद्धि , ज्ञान , संतान पक्ष और रोग , द्वण , शत्रु जैसे झंझट का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्नवाले जातकों के अपनी या संतान पक्ष की पढाई लिखाई और अन्य मामलों में झंझट आने की बहुत संभावना बन जाती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों की खुद की सूझ बूझ अच्छी होती है , संतान पक्ष बहुत मजबूत स्थिति में होता है , जो प्रभाव को बढाने में सहायक सिद्ध होता है। पर जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के कमजोर रहने पर कन्या लग्नवाले अपनी या बच्चों की पढाई लिखाई को लेकर बडा झंझट प्राप्त करते हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शनि की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में शनि सूर्य के निकट हो तो शनि को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और शनि आमने सामने हो तो शनि काफी कमजोर होता है।
ज्योतिष में सभी लग्न की कुंडलियों के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं। लेकिन ग्रह कमजोर है या मजबूत, इसका पता आंशिक तौर पर हमारे योगकारक ग्रहों का प्रभाव लेख से मालूम हो सकता है, पर ग्रहों की गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति की जानकारी के लिए हमारे केंद्र से जन्मकुंडली बनवाना आवश्यक है!