Vrischika lagna characteristics
आसमान के 210 डिग्री से 240 डिग्री तक के भाग का नामकरण ...वृश्चिक राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न वृश्चिक माना जाता है। वृश्चिक लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र नवम् भाव का स्वामी होता है और यह जातक के भाग्य , धर्म आदि मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए वृश्चिक लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले संदर्भ ये ही होते हैं। जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर ऐसे जातक बहुत भाग्यशाली होते हैं , संयोग से इनका काम होता रहता है।भाग्य का भरपूर सुख मिलने से वृश्चिक लग्न के जातक का मन खुश और जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर इनकी कमजोर स्थिति से इनका मन आहत होता है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' चन्द्रमा की शक्ति का निर्णय इसके आकार के आधार पर करता है। अमावस के चन्द्रमा को शुन्य, दोनों अष्टमी के चन्द्रमा को 50 और पूर्णिमा के चन्द्रमा को 100 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है।
Vrishchik lagna me surya
वृश्चिक लग्न की कुंडली के अनुसार समस्त जगत में चमक बिखेरने वाला सूर्य दशम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के पिता , पद प्रतिष्ठा और सामाजिक राजनीतिक स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए अपने नाम यश को फैलाने के लिए वृश्चिक लग्न के जातक अपने पद प्रतिष्ठा को मजबूत बनाने पर जोर देते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के मजबूत रहने से इनका जन्म प्रतिष्ठित परिवार में होता है , इन्हें पिता का सुख प्राप्त होता है , पद प्रतिष्ठा की मजबूती से इनकी कीर्ति फैलती और जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के कमजोर रहने इन सबकी कमी से इनकी कीर्ति घटती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' में सूर्य को हर वक्त 50 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है, पर यह जिस ग्रह की राशि में होता है, उससे इन्हे गत्यात्मक शक्ति प्रभावित होकर थोड़ी धनात्मक या ऋणात्मक हो जाती है।
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Vrishchik lagna me mangal
वृश्चिक लग्न की कुंडली के अनुसार मंगल प्रथम और षष्ठ भाव का स्वामी होता है और यह जातक के शरीर , व्यक्तित्व , आत्मविश्वास और रोग , ऋण , शत्रु जैसे झंझटों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातकों के स्वास्थ्य में झंझट बने होने की संभावना रहती है । जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के मजबूत रहने पर इनका स्वास्थ्य अच्छा होता है , जीवन में अधिक झंझट नहीं आते , झंझओं से लडने की शक्ति मौजूद होती है , जिससे प्रभावशाली माने जाते हैं। विपरीत स्थिति में यानि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के कमजोर रहने पर स्वास्थ्य की कमजोरी आत्मविश्वास को कमजोर बनाती है, झंझटों से लडने की शक्ति कम होती है तथा प्रभाव की कमी महसूस करते हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' मंगल की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में मंगल सूर्य के निकट हो तो मंगल को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और मंगल आमने सामने हो तो मंगल काफी कमजोर होता है।
Vrishchik lagna me Shukra
वृश्चिक लग्न की कुंडली के अनुसार शुक्र सप्तम और दशम भाव का स्वामी है और यह जातक के घर गृहस्थी , खर्च और बाह्य संदर्भों आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इनके घर गृहस्थी के वातावरण में खर्च का बहुत महत्व होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र के मजबूत रहने पर वृश्चिक लग्नवालों को खर्चशक्ति की प्रचुरता प्राप्त होती है , इस कारण इनकी घर गृहस्थी बहुत आरामदायक होती है। पर जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र के कमजोर रहने पर खर्चशक्ति की कमी के कारण वृश्चिक लग्नवालों के घरेलू जीवन में समस्याएं देखने को मिलती हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शुक्र की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, शुक्र की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो शुक्र को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही शुक्र वक्री होता है तेजी से घटती हुई गत्यात्मक शक्ति शुन्य हो जाती है।
Vrishchik lagna me budh
वृश्चिक लग्न की कुंडली के अनुसार बुध अष्टम और दशम भाव का स्वामी है और यह जातक के जीवनशैली और लाभ का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातकों के जीवनशैली को मजबूती देने में लाभ की तथा लाभ को मजबूत बनाने में जीवनशैली की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों का लाभ मजबूत होता है , जिससे जीवनशैली सुखद बनी होती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के कमजोर रहने पर वृश्चिक लग्नवाले लाभ की कमी के कारण अपनी जीवनशैली को बहुत कमजोर पाते हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' बुध की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, बुध की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो बुध को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही बुध वक्री होता है तेजी से घटती हुई इसकी गत्यात्मक शक्ति शून्य हो जाती है।
Vrishchik lagna me Brihaspati
वृश्चिक लग्न की कुंडली के अनुसार बृहस्पति द्वितीय और पंचम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के धन , कोष , परिवार , बुद्धि , ज्ञान और संतान का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए वृश्चिक लग्न के जातकों के अपनी या संतान की पढाई लिखाई में धन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के मजबूत होने पर तुला लग्न के जातकों की धन की स्थिति मजबूत होती है , जिससे अपना या संतान पक्ष का बौद्धिक विकास सुखद ढंग से हो पाता है। इसके विपरीत , जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के कमजोर होने पर वृश्चिक लग्नवाले जातकों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है , जिसका बुरा प्रभाव उनकी खुद या संतान पक्ष के बौद्धिक विकास पर पउता है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' गुरु की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में गुरु सूर्य के निकट हो तो गुरु को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और गुरु आमने सामने हो तो गुरु काफी कमजोर होता है।
Vrishchik lagna me shani
वृश्चिक लग्न की कुंडली के अनुसार शनि तृतीय और चतुर्थ भाव का स्वामी होता है यानि यह जातक के भ्रातृ पक्ष , मातृ पक्ष , हर प्रकार की संपत्ति , स्थायित्व मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्नवाले जातकों के भाई , बंधुओं के कारण स्थायित्व के मजबूत या कमजोर होने की संभावना बनती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों को भाई बंधु बांधव से सुख प्राप्त होता है, हर प्रकार की संपत्ति की स्थिति मजबूत होती है। पर जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के कमजोर रहने पर वृश्चिक लग्नवालों के भाई बंधु में संपत्ति को लेकर विवाद बनने की संभावना बनती है। मातृ पक्ष के सुख में भी कमी देखने को मिलती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शनि की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में शनि सूर्य के निकट हो तो शनि को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और शनि आमने सामने हो तो शनि काफी कमजोर होता है।
ज्योतिष में सभी लग्न की कुंडलियों के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं। लेकिन ग्रह कमजोर है या मजबूत, इसका पता आंशिक तौर पर हमारे योगकारक ग्रहों का प्रभाव लेख से मालूम हो सकता है, पर ग्रहों की गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति की जानकारी के लिए हमारे केंद्र से जन्मकुंडली बनवाना आवश्यक है!
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