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गत्यात्मक ज्योतिष के रिसर्च के बादज्योतिष को जन-जन तक समझना-समझाना आवश्यक महसूस होता है। कल के लेख में मैने समझाया था कि सबों की नजर अपने को स्थिर मानकर ही परिस्थितियों का अवलोकन करती है। इसलिए हमलोग असमान का अवलोकण पृथ्वी को स्थिर मानते हुए करते हैं , इसलिए ज्योतिष के इस महत्वपूर्ण आधार को गलत साबित करना सही नहीं है। बात अवलोकन तक तो ठीक मानी जा सकती है , पर हमारे अवलोकण से उन राशियों या ग्रहों नक्षत्रों का पृथ्वी के जड चेतन पर प्रभाव भी पड जाए , यह तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण वालों को तर्कसम्मत नहीं लगता। और ज्योतिष तो पृथ्वी के सापेक्ष ही सभी राशियों और ग्रहों के स्थान परिवर्तन की चर्चा करता है और उसके हमपर प्रभाव पर बल देता है। जाहिर है , अधिकांश पाठक इस बात को भी स्वीकार नहीं कर पाते।
पर इसके लिए भी मेरे अपने तर्क हैं। हमारे सौरमंडल का एक तारा सूर्य लगभग अचल है , हालांकि इधर के कुछ वर्षों में उसकी गति के बारे में भी जानकारी मिली है , पर यह गति बहुत अधिक नहीं है और वास्तव में यह पृथ्वी की गति के सापेक्ष ही परिवर्तनशील दिखाई देता है। ज्योतिष की पुस्तकों में सूर्य प्रतिदिन एक डिग्री खिसक जाता है , जबकि राशि के हिसाब से प्रतिमाह एक नई राशि में प्रवेश करता है।
चिन्तनशील विचारक पाठकों, आपके मन में ज्योतिष से सम्बंधित कोई भी प्रश्न उपस्थित हो , सकारात्मक तार्किक बहस के लिए हमारे व्हाट्सप्प ग्रुप (jyotish whatsapp group link) में आपका स्वागत है , क्लिक करें !
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पृथ्वी की वार्षिक गति के सापेक्ष ही पंचांगों में सूर्य की स्थिति में प्रतिदिन परिवर्तन देखा जाता है , जबकि दिन भर के 24 घंटों में सूर्य की स्थिति में कोणिक परिवर्तन पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही होता है।
सूर्य की ये दोनो गतियां अवास्तविक मानी जा सकती हैं , पर इसके फलस्वरूप पृथ्वी पर दिन भर के 24 घंटों और वर्षभर के 365 दिनों के सूर्य के अलग अलग प्रभाव को स्पष्टतया देखा जा सकता है।
भृगुसंहिता के बारे में
पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण सूर्य की स्थिति में होनेवाले परिवर्तन का प्रभाव हम देख पाते हैं। सूर्य तो 12 महीने के 365 दिनों तक एक ही स्थान पर है , पर उसके द्वारा पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में कभी सर्दी तो कभी गर्मी .. इस मौसम परिवर्तन का कारण पृथ्वी के कारण उसकी सापेक्षिक गति ही तो है।
इसी प्रकार पृथ्वी की दैनिक गति के कारण सूर्य की स्थिति में होने वाले परिवर्तन को भी हम सहज ही महसूस कर सकते हैं। सवेरे का सूरज , दोपहर का सूरज और शाम के सूरज की गरमी का अंतर सबको पता है यानि कि अवलोकण के समय सूर्य जहां दिखाई देता है , वैसा ही प्रभाव दिखाता है।
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अब चूंकि सूर्य का प्रभाव स्पष्ट है , इसमें हमारा विश्वास हैं , अन्य ग्रहों का प्रभाव स्पष्ट नहीं है , इसलिए इसे अंधविश्वास मान लेते है। पर एक सूर्य के उदाहरण से ही पृथ्वी के सापेक्ष पूरे आसमान और ग्रहों की स्थिति का प्रभाव भी स्पष्ट हो जाता है।
सापेक्षिक गति के कारण होनेवाले इस एक उदाहरण के बाद ज्योतिष के इस आधार में कोई कमी निकालना बेतुकी बात होगी। पृथ्वी को स्थिर मानते हुए आसमान को 12 भागों में बांटा जाना और उसमें स्थित ग्रह नक्षत्र के प्रभाव की चर्चा करना पूर्ण तौर पर विज्ञान माना जा सकता है , जिसकी चर्चा लगातार होगी .
ग्रहो नक्षत्रों की गति में साम्यता की वजह से ही इसे काल निर्धारण का सशक्त माध्यम समझा गया और सभी जगहों पर काल की छोटी से बड़ी इकाई ग्रह नक्षत्रों के चाल पर ही निर्भर है! जल्द ही वीडियो के द्वारा अपनी बातों को समझाने का प्रयास करूंगी!