गत्यात्मक चिंतन : जीवन के अच्छे विचार
पुराणमित्येव न साधु सर्वं न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम्।
सन्तः परीक्ष्यान्यतरद्भजन्ते मूढः परप्रत्ययनेयबुद्धिः॥
अर्थ- हर चीज केवल इसलिए अच्छा नहीं हो सकता है, कि वह पुराना है. और न हर चीज इसलिए गलत है कि वह नया है , संत साधु के लोग परीक्षा करके देखते हैं कि दोनो में से कौन कौन सी बातें ग्राह्य है .---
हमारे 'गत्यात्मक चिंतन' नामक ब्लॉग से लिए गए जीवन के कुछ अच्छे विचार आपके लिए प्रस्तुत हैं :----
- एक - एक परिवार की, एक - एक जाति की, एक - एक धर्म की, एक - एक मुहल्ले की , एक - एक शहर की, एक - एक क्षेत्र की, एक - एक देश की अलग अलग विशेषताएं होती है , जो वहां जन्म लेने वाले बच्चे में कुछ तो आनुवंशिक तौर पर आती है और कुछ उसके अपने संसाधनों और संस्कार देने वाले गुरुओं के अनुरूप बन जाती है । इस पहचान को दर्शाने में कोई बुराई नहीं , क्षेत्रीय पहचान और गुणों की विविधता को राष्ट्रीय मजबूती बननी चाहिए , न कि कमजोरी । मानवतावादी तो हमे होना ही चाहिए ,भारतवर्ष के लिए विभिन्नता में एकता का कॉन्सेप्ट पुराना है और यह स्थाई भाव होना चाहिए .
- उम्मीद के समाप्त होने के समय कष्ट और आशंका के समाप्त होने के समय खुशी होती है .. बाकी समय तो बिल्कुल सामान्य होता है।
- जिस दिन हमारे देश के विद्वान हमारी भाषाओं में अपने ज्ञान को किताबों और भाषणों की शक्ल में अभिव्यक्ति देने लगेंगे .. हमारे बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढने की जरूरत नहीं पडेगी
- आनेवाले पुश्त के लिए आर्थिक आधार मजबूत करने से अधिक अच्छा उन्हें शारीरिक , बौद्धिक और नैतिक रूप से मजबूत बनाना है
- किसी भी देश में लोकतंत्र स्थापित करने से पहले देशवासियों की मानसिक , शैक्षणिक , नैतिक और चारित्रिक मजबूती आवश्यक है ... अन्यथा लोकतंत्र का कबाडा होने में देर नहीं लगती !!
- परिस्थितियां कभी समस्या नहीं बनती ...समस्या तभी बनती है जब हमें परिस्थितियों से निपटना नहीं आता।
- हर दिमाग के बीज को एक विशाल वृक्ष बनाने में हर कोई मदद करे , ताकि हमारे चारो ओर विशाल ही विशाल वृक्ष नजर आए , सभी अपनी अपनी विशेषताओं की घनी पत्तियों से छांव , सुगंधित पुष्पों से वातावरण में सुगंध और मीठे फलों से लोगों को असीम तृप्ति प्रदान करे।
- संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि हमारी महत्वाकांक्षा ऐसी होनी चाहिए , जिससे प्रकृति की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए , इसके सारे जीव जंतुओं का कल्याण करते हुए मनुष्य के जीवन को अधिक से अधिक सुख सुविधा संपन्न बनाए !
- महत्वाकांक्षा ऐसी कभी नहीं होनी चाहिए , जो प्रकृति को तहस नहस करते हुए , सारे जीव जंतुओं का विनाश करते हुए अपनी मानव जाति के हित तक की चिंता न करते हुए सिर्फ अपने जीवन को अधिक सुख सुविधा संपन्न बनाएं ।
- विचारों से दोस्ती या दुश्मनी होनी चाहिए, व्यक्ति से नही! आजकल समान रूचि, समान पेशा, समान स्वभाव वाले ही आपस में विवाह करना चाहते हैँ, ताकि उनमे सामंजस्य बना रहे, पर पति और पत्नी के दो विचार उनके बच्चों को आनेवाली पीढ़ी को संतुलित बनाते हैं।
- भारतवर्ष में श्रम विभाजन को बहुत अधिक महत्व दिया गया है, इतना अधिक कि यहाँ हर प्रकार के कार्य को सिद्ध करने वाले अलग अलग देवी देवता तक हैं. ऐसे में अलग अलग कार्य के लिए बनाये गए यहाँ की जाति व्यवस्था पर ऊँगली उठाना कहाँ तक न्यायसंगत है ?
- कोई जब किसी का बुरा करने की सोंचते हैं तो सामने वाले का जितना बुरा होता है उससे 100 गुणा उसका अपना बुरा होता है।
- सामनेवाला तो और सतर्क होता जाता है और अपने विकास पर ध्यान संकेन्द्रित करता है ।
- थोडा बुरा होने से उसकी तरक्की में कोई अंतर नहीं पडता , लेकिन दूसरे का बुरा सोचने वाले कंगाल हो जाते हैं ।
- इसलिए तो किसी भी आध्यात्मिक गुरू ने हिंसा की बात स्वीकार ही नहीं की, जबतक बुरे और अन्याय करने वाले हमसे अधिक समर्थ न हो जाएं।
- छोटा या बडा तकनीकी ज्ञान और उसका स्वतंत्र रूप से उपयोग ही हर तबके के मानव को उसका अधिकार दिला सकता है ! सबकुछ सहकर भी दूसरों की नौकरी चाकरी वही करता है, जो स्वयं कुछ करने के काबिल नहीं !
- किसी के जीवनभर को ध्यान से देखा जाए , तो हमें पता चलेगा कि सुख और दुख जीवन के अभिन्न अंग हैं। पूरे जीवन में बहुत जगहों पर ऐसा समय आता है , जब हमारे सम्मुख आगे बढने का रास्ता ही समाप्त दिखता है। वैसी स्थिति में बडा तनाव होता है , पर जहां ऐसी स्थिति आती है , वहीं से हमारे सामने एक नहीं , कई नए रास्ते दिखते हैं ।
- जिस दिन अपने अधिकारों का अनुचित पालन करने से बचेंगे लोग, जिस दिन अपने कर्तव्यों का समुचित पालन करेंगे लोग, उसी दिन से दुनिया शांतिपूर्ण ढंग से जीएगी ! क्योंकि किसी के द्वारा भी गलत परम्परा की शुरुआत बहुसंख्यक को उसी रास्ते पर ले जाती हैं !
- हमारी संस्कृति तोडना नहीं जोडना सीखलाती है, किसी भी शुभ अवसर में छोटी छोटी बूंदियों को जोडकर लड्डू बनाया जाता है, बूंदियों के मध्य इसका स्वाद बढाने वाली चीजें स्वीकार्य हैं, स्वाद घटाने वाली चीजें नहीं डाली जाती !
- सनातन धर्म लचीला होता है और हमें इसका लचीलापन बने रहने देना चाहिए ! भारत में जाति ओर धर्म से जुडी सभी समस्याएं सामयिक होती हैं ! समय उनका हल भी अपने आप ढूंढता है ! इसी प्रकार अन्य खामियां भी समय के साथ आयी हैं, समय के साथ जाएंगी भी, बस किसी की परवाह न करके सोंच को मजबूत रखने की आवश्यकता है।
- यत्र तत्र घट रही घटनाओं से जाहिर है कि हमारी नई पीढी गुमराह है ! ऐसे में शिक्षकों का दायित्व बहुत बढ जाता है ! पर आज के शिक्षकों में भी यह काबिलियत नहीं कि वो भटके हुए छात्रों को दिशा दें ! स्वतंत्रता के बाद समाज के सर्वाधिक प्रतिभाशाली लोग शिक्षण के क्षेत्र में काम करते थे ! पढना और पढाना उनकी पसंद हुआ करती थी ! पर धीरे धीरे ऐसा वातावरण बना कि शिक्षा के क्षेत्र में कैरियर पढे लिखे लोगों के लिए अंतिम विकल्प बन गया ! व्यवस्था को इस ढंग से सुधारने की आवश्यकता है ताकि आनेवाले समय में शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रतिभा आएं, जो छात्रो के सिर्फ प्रोफेशनल ज्ञान देने में ही नहीं वरन् उनके नैतिक और चारित्रिक गुणों को भी बढाने में मदद करें !
- किसी मनोकामना के पूरी होने के लिए प्रार्थना करते वक्त कभी भी उसके बदले में कुछ ले लेने की बात मुंह से न निकाले। यह समझते हुए कि अभी आयी समस्या के अतिरिक्त अन्य बातों का कोई महत्व नहीं , लोग अक्सर भावावेश में कह बैठते हैं ' मेरा यह काम कर दो , चाहे बदले में कुछ भी ले लो' ऐसे में कभी कभी उस सफलता की बडी कीमत चुकानी पडती है।