ज्योतिष और सुखी वैवाहिक जीवन का राज
ज्योतिष में लग्न निर्धारण के बाद कुंडली के विभिन्न भावों का बहुत महत्व है। इस ब्लॉग के कुंडली भाव सेक्शन में आप सभी भावों के बारे में पढ़ रहे हैं। मानव जीवन के सातवें पक्ष के रुप में घर गृहस्थी को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। जन्मकुंडली में मनुष्य का छठा भाव ही उसके पारिवारिक और दांपत्य जीवन की व्याख्या करता है। विवाह से पूर्व प्रेम संबंधों और विवाह के बाद वैवाहिक सुख या कष्ट को समझने में इस भाव की ही भूमिका है।
यही कारण है कि योगकारक ग्रहों का विज्ञान नामक में सातवे भाव के स्वामी या उसमे मौजूद ग्रहों को +3 अंक दिए गए हैं। योगकारकता के हिसाब से तथा गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति के हिसाब से यह भाव भी महत्वपूर्ण या ऋणात्मक होता है। गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति को समझने के लिए गत्यात्मक ज्योतिष ने गणित ज्योतिष के अद्भुत गत्यात्मक सूत्र दिए हैं। उसी आधार पर गत्यात्मक ज्योतिष के अनुसार कुंडली देखने का तरीका भी बताया है।
परंपरागत ज्योतिष में सातवें भाव को लेकर धनात्मक चिंतन का कारण भी स्पष्ट है। भारतीय जीवनशैली में घर-गृहस्थी का बहुत महत्व है, पारिवारिक सुख सफलता का राज हमारे इस भाव के भाग्य या दुर्भाग्य में छुपा हुआ है। चूँकि पति-पत्नी का साथ दिन रात का होता है, आपसी समझ अच्छी हो तो जीवन स्वर्ग सा और समझ बुरी हो तो जीवन नरक सा दीखता है। वर्तमान ही नहीं भविष्य को भी खुशहाल बनाने में आपसी प्रेम ही , विचारों का तालमेल ही सहयोगी होता है।
बाकि भावों की तरह ही इन सबकी भी वस्तुनिष्ठ विशेषताओं की चर्चा कर पाना फलित ज्योतिष में संभव नहीं है। किसी व्यक्ति के जीवन में कैसे पति या पत्नी आएंगे ? वो गोरा होगा या काला ? गोरी होगी या काली ? लंबा होगा या नाटा ? लम्बी होगी या नाटी ? नौकरी पेशा होगा या व्यवसाय में संलग्न ? नौकरी पेशा होगी या व्यवसाय करती हुई ? पूर्व दिशा में होगा या पश्चिम ? इन बातों की जानकारी कतई नहीं दी जा सकती।