My diary quotes in Hindi
गत्यात्मक ज्योतिष के जनक मेरे पिताजी श्री विद्या सागर महथा जी की डायरी में लिखे गए कुछ कोट्स
- सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के नक्षत्र मंडल और पाउडर के कण की तरह बिखरे टिमटिमाते अनंत सूर्य देखने में स्थिर और अचल प्रतीत होते हैं, उसकी स्थिरता और अचलता के बावजूद उसके हर सूर्य तथा उसके सदस्यों में स्पंदन, थिरकन और तांडव के बीच एक लय होता है. अणु की आतंरिक बनावट इलेक्ट्रोन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन से है, अणु अपनी जगह स्थिर है लेकिन उसके सूक्ष्म विभाग में निरंतर स्पंदन है.
- बालपन चन्द्रमा का, विद्यार्थी जीवन बुध का, युवावस्था मंगल का, प्रारंभिक प्रौढ़ावस्था शुक्र का, प्रौढ़ावस्था सूर्य के अधीन होगा, प्रत्येक का काल 12 -12 वर्षों का होगा. इसके बाद का आधा जीवन बृहस्पति, शनि, युरेनस, नेप्च्यून, प्लूटो का होगा. इस सिद्धांत का प्रतिपादन मैंने 36 वर्ष की उम्र में किया. इसके बाद मेरे मन-मस्तिष्क में यह बात कौंधने लगी- सबका बचपन, किशोरावस्था,युवावस्था ................वृद्धावस्था एक जैसा क्यों नहीं होता?
- गांव मे एक बुजुर्ग के मुख से सुना –आदमी की दस दशायें होती हैं ,किसी की दशा पर हंसिये नही ,न जाने ग्रह कब किस दशा से किसको गुज़रने के लिये मज़बूर कर दे .संयोग से सौरमण्डल मे सूर्य को लेकर दस ग्रह या आखाशीय पिण्ड हैं .मै राहू केतु को कोई ग्रह नही मानता .
- जो होना है वह होगा ,फिर ग्राफ देखने से क्या फायदा ? इस प्रकार की सोंच यथास्थितिवाद का परिचायक है .अगर आदिकाल का मानव ऐसा ही सोंचता तो वहां से टस से मस नही होता हर काल के मानव ने हर समय प्राकृतिक नियमों को समझने की कोशिश की और हर जानकारी का उसने फायदा उठाया ,अपने जीवन को बेहतर बनाता चला गया .अगर इस तरह की बात नही होती तो आज हम इस वैज्ञानिक युग मे नही होते ,आदिकाल के मानव की तरह ही असभ्य होते .
- रास्ते में कोई मिले , फ़ोन पर बात करना शुरू करे, सबसे पहले हाल चाल पूछता है ,मतलब हालात कैसे हैं ? किस स्थिति मे हो ? कैसी चाल है ? तरह –तरह के उत्तर हो सकते हैं .सबकुछ ठीक है , हाल का मतलब मतलब स्थिति और चाल का मतलब गति - दोनो ठीक हैं .बहुत ठीक नही है , किसी तरह से चल रहा है , मतलब सामान्य गति से चल रहा है . कुछ भी ठीक नही चल रहा है , दस वर्ष पहले जहां था , वहीं हूं , यथास्थिति बनी हुई है या सबकुछ उल्टा चल रहा है ,मतलब आगे बढने की बजाय हम पीछे जा रहे हैं .
- इस तरह हालचाल का सीधा उत्तर मिला - तेज गति , सामान्य गति , यथास्थिति या उल्टी गति . संयोग से देखिये , सूर्य चन्द्रमा को छोडकर जितने भी ग्रह हैं , सभी की गतियां भी मूलत: चार प्रकार की हैं , मतलब हुआ , जैसी ग्रह की स्थिति वैसी आपकी गति . इसलिए जन्मकुंडली मे ग्रहों की स्थिति और गति दोनों को देख जाना चाहिए! यहीं से गत्यात्मक दशा पद्धति की उत्पत्ति होती है .
- मेरे बचपन का प्रतिनिधि चन्द्रमा कमजोर था, तो मेरी मनोवैज्ञानिक शक्ति के विकास क्रम में तरह तरह की मानसिक-शारीरिक कठिनाइयां आईं. इसके बाद बुध के समरूपगामी होने से विद्यार्थी जीवन में तीक्ष्ण बुद्धिवाला गणित और विज्ञान के गाम्भीर्य को समझने वाला मैं बन गया किन्तु मंगल की वक्रता ने फिर मुझे मायूस किया.
- वक्र ग्रह जातक से आत्म निरीक्षण कराता है, संवेदनशील, मानवता का पक्षधर, प्रकृति प्रेमी, ऐकांतिक और एक भक्त की तरह बनाता है. जिन भावों का स्वामी होता है उसके अस्तितत्व को बनाये रखने का मोह उत्पन्न करता है. मंगल के काल में पिताजी और भाइयों से बढ़कर मेरे लिए कोई नहीं था. मुझे अपने अच्छे-बुरे की कोई चिंता नहीं थी.
- शुक्र का काल आते ही 1975 से 1981 के बीच हर प्रकार के उपलब्धियों से संयुक्त कर दिया. आवश्यक संसाधन स्वयं आकर उपस्थित हो गए. शुक्र ने मुझे पूर्ण आश्वस्त कर दिया कि मनुष्य के सोच-विचार, परिस्थितियां, निर्णय-शक्ति, कार्यक्रम और कार्य करने की क्षमता में भी निरंतर एक थिरकन या लयात्मक परिवर्तन होता है जो ग्रहों की गति के सापेक्ष अच्छा या बुरा होता है.
- मिथुन राशि पंचम भाव में समरूपगामी बुध की राशि में समरूपगामी सूर्य तथा शीघ्र गति का शुक्र स्थित है. शुक्र ने भाग्य, संयोग की ताकत से बुद्धि बल का सहारा लेते हुए ज्योतिष विद्या को ज्योतिष विज्ञान बना दिया, सूर्य ने मुझे बहुत अच्छी गृहस्थी दी जो हर तरह से मेरे चिंतन-मनन के अनुकूल था.
- मुझे संतुष्टि इस बात की है कि मैंने जीवन के अधिकांश क्षणों का सदुपयोग करके ज्योतिष जैसे गूढ़ विषय को वैज्ञानिक आधार देने में सफलता पाई है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में यह लोगों के बीच ग्राह्य होगा और इसे समुचित मान्यता मिलेगी।
- हम जिस सौर मंडल के अंतर्गत हैं उसके प्रत्येक सदस्य से हमारा गतिज सम्बन्ध बन जाता है और ये समस्त अवयव हमारे विकास क्रम में शैशव अवस्था से वृद्धावस्था तक अपनी गतियों के अनुसार विभिन्न परिस्थितियों का निर्माण करते चले जाते हैं. ग्रहों की मूल स्थिति जो हमारे जन्म काल में होती है, वही हमारी प्रकृति होती है और जीवन के शेष काल में उसकी विभिन्न गतियां जो हमारे सोच विचार को प्रभावित करती है वह हमारी प्रवृत्ति होती है.
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