अन्धविश्वास ही नहीं गरीब लोगों की मजबूरी भी है (is ojha origin of evil )
हमारी घरेलू सहयिका का पति दो महीने से बीमार चल रहा है , घर में पैसों का आना बंद हो गया है , जो थोड़े पैसे थे वो डॉक्टर दवा के चक्कर में निकल गए , मैं प्रतिदिन उसका हालचाल पूछती तो जबाब निराशाजनक ही मिलता , २४ से ४८ घंटे में एक बार बुखार आना मानो तय हो गया था, हिसाब से अधिक खर्च हो जाने के कारण वह डॉक्टर के पास जाने की स्थिति में नहीं थी , सिम्पटम से मुझे अंदाजा हो रहा था कि १७ अगस्त के बाद समस्या समाप्त हो जानी चाहिए , मैने उससे धैर्य रखने को कहा !
पर पति की ऐसी हालत देखकर उसे चैन न था, तीन दिन पहले उसने दो काम किए , पहला हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर दिए जलाकर मन्नत माग आयी कि पति ठीक हो जाएं तो आकर नारियल फोड़ेगी , दूसरा एक ओझा के यहां जाकर तंत्र मंत्र करवा आयी, आज चौथा दिन है, बुखार नहीं चढ़ा अबतक , जबतक हम जनसामान्य के लिए हर प्रकार की मेडिकल सुविधा की व्यवस्था नहीं कर देते , किसी के इस तरह की आस्था को नहीं खत्म कर सकते , मै उससे यह नही कह पायी कि तुम्हारी आस्था अंधविश्वास है.
मैं नरेन्द्र दाभोलकर जी के उसी बात का समर्थन करती हूं जो अंधविश्वास के खिलाफ है, क्योंकि हम लगभग हर माह ही पढ़ते है गाँवों में कैसे डायन आदि के शक में ह्त्या हो जाती है ! पर जबतक सरकारी अस्पतालों में मरीज के इलाज की पूरी व्यवस्था नहीं रहेगी, मंदिरों , मस्जिदों के चक्कर लगाना , ओझाओं के पास जाना गरीब लोगों की मजबूरी है !
महत्वपूर्ण क्वोट्स
उनके पास प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने के पैसे नहीं होते और सारे ओझा गलत नहीं होते ! गांवों में मनोवैज्ञानिक तौर पर सपोर्ट करने वाले बहुत सारे ओझा है, जिनका सफाया भी तबतक नहीं होना चाहिए जबतक कि इलाज की अच्छी सुविधाएं सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध न हो ! शरीर के अंदर मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता से बीमारी को ठीक करने की शक्ति तो ओझा दे ही देते हैं !सर्टिफाइड डॉक्टरों की तरह खर्च का तनाव देकर रोग प्रतिरोधक क्षमता को समाप्त नहीं करते !
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