Meen Lagna ki kundli in hindi
मीन लग्न में चन्द्रमा का प्रभाव
(Meen Lagna me Chandra)
आसमान के 3...30 डिग्री से 360 डिग्री तक के भाग का नामकरण मीन राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न मीन माना जाता है। मीन लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र पंचम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के बुद्धि , ज्ञान , संतान पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए मीन लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर प्रभावित करने वाले संदर्भ यही होते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों की बुद्धि तीक्ष्ण होती है , इन्हें संतान पक्ष का भरपूर सुख प्राप्त होता है , जो मन को खुश रखता है। जबकि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर बुद्धि और सूझ बूझ की कमी और संतान पक्ष के सुख में कमी इनके मन को दुखी करते हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' चन्द्रमा की शक्ति का निर्णय इसके आकार के आधार पर करता है। अमावस के चन्द्रमा को शुन्य, दोनों अष्टमी के चन्द्रमा को 50 और पूर्णिमा के चन्द्रमा को 100 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है।
मीन लग्न में सूर्य का प्रभाव
(Meen Lagna ki kundli me surya)
मीन लग्न की कुंडली के अनुसार समस्त जगत में चमक बिखेरने वाला सूर्य षष्ठ भाव का स्वामी होता है और यह जातक के रोग , ऋण , शत्रु या अन्य प्रकार के झंझट का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए अपने नाम यश को फैलाने के लिए मीन लग्न के जातक किसी प्रकार के झंझट को हल कर प्रभाव बढाने में विशेष दिलचस्पी रखते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के मजबूत रहने से इनके झंझट को हल करने का तरीका उत्तम कोटि का और अनुकरणीय होता है , जबकि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के कमजोर रहने इन्हें हर प्रकार के झंझट से कष्टकर समझौता करने को बाध्य होना पडता है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' में सूर्य को हर वक्त 50 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है, पर यह जिस ग्रह की राशि में होता है, उससे इन्हे गत्यात्मक शक्ति प्रभावित होकर थोड़ी धनात्मक या ऋणात्मक हो जाती है।
मीन लग्न में मंगल का प्रभाव
(Meen Lagna ki kundli me Mangal)
मीन लग्न की कुंडली के अनुसार मंगल द्वितीय और नवम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के धन , कोष और भाग्य का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातकों के धन की स्थिति को मजबूत बनाने में भाग्य की बडी भूमिका होती है , किसी प्रकार के संयोग से संसाधन प्राप्त करते तथा किसी दुर्योग से संसाधनहीन होते है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के मजबूत रहने पर भाग्य के साथ देने से इनका धन कोष मजबूत बना रहता हैं। विपरीत स्थिति में यानि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के कमजोर रहने पर भाग्य की कमजोरी धन कोष को कमजोर बनाती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' मंगल की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में मंगल सूर्य के निकट हो तो मंगल को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और मंगल आमने सामने हो तो मंगल काफी कमजोर होता है।
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मीन लग्न में शुक्र का प्रभाव
(Meen Lagna ki kundli me Shukra)
मीन लग्न की कुंडली के अनुसार शुक्र तृतीय और अष्टम भाव का स्वामी है और यह जातक के भाई , बहन , बंधु , बांधव और जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए मीन लग्नवालों की जीवनशैली का भाई बहन बंधु बांधव का संबंध बना होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र के मजबूत रहने पर मीन लग्नवाले भाई , बहन , बंधु और बांधव का सुख प्राप्त करते हैं , उनकी जीवनशैली को सुखमय बनाने में भाई बंधु की भमिका होती है। पर जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र कमजोर हो तो भाई बहन बंधु बांधव से संबंधित जबाबदेहियों के कारण उनकी जीवनशैली कमजोर दिखाई पडती है, इनसे सहयोग की कमी से तनावग्रस्त रहते हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शुक्र की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, शुक्र की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो शुक्र को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही शुक्र वक्री होता है तेजी से घटती हुई गत्यात्मक शक्ति शुन्य हो जाती है।
मीन लग्न में बुध का प्रभाव
(Meen Lagna me Budh)
मीन लग्न की कुंडली के अनुसार बुध चतुर्थ और सप्तम भाव का स्वामी है और यह जातक के मातृ पक्ष , हर प्रकार की संपत्ति और घर गृहस्थी का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातक के घर गृहस्थी का उनकी माता या हर प्रकार की संपत्ति से संबंध बना होता हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों को मातृ पक्ष का भरपूर सहयोग मिलता है , हर प्रकार की संपत्ति इनके घर गृहस्थी के वातावरण को सुखमय बनाती हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के कमजोर रहने पर जातक का मातृ पक्ष के विचारों से तालमेल नहीं होता , हर प्रकार की छोटी बडी संपत्ति कष्ट का कारण बनकर घर गृहस्थी के माहौल को बिगाडती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' बुध की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, बुध की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो बुध को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही बुध वक्री होता है तेजी से घटती हुई इसकी गत्यात्मक शक्ति शून्य हो जाती है।
मीन लग्न में बृहस्पति का प्रभाव
(Meen lagna ki Kundli mein Brihaspati)
मीन लग्न की कुंडली के अनुसार बृहस्पति प्रथम और दशम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के स्वास्थ्य , व्यक्तित्व , पिता पक्ष , पद प्रतिष्ठा और सामाजिक राजनीतिक वातावरण का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए मीन लग्न के जातकों के आत्मविश्वास को बढाने घटाने में पिता की भूमिका बनती है , उनके व्यक्तित्व का समाज में एक पहचान बना होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के मजबूत होने पर मीन लग्न के जातक को पिता का भरपूर सुख प्राप्त होता है , प्रकृति की ओर से स्वस्थ शरीर प्राप्त करते हैं , अपने आत्मविश्वास से समाज में अच्छी पहचान बनती है। इसके विपरीत , जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के कमजोर होने पर मीन लग्नवाले जातक को पिता का सहयोग नहीं मिलता , स्वास्थ्य की गडबडी भी आत्मविश्वास को कमजोर बनाती है और उनकी पहचान में बाधा उपस्थित करती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' गुरु की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में गुरु सूर्य के निकट हो तो गुरु को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और गुरु आमने सामने हो तो गुरु काफी कमजोर होता है।
मीन लग्न में शनि का प्रभाव
(Meen Lagna me Shani)
मीन लग्न की कुंडली के अनुसार शनि एकादश और द्वादश भाव का स्वामी होता है यानि यह जातक के लाभ , खर्च और बाहरी संदर्भों आदि मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्नवाले जातकों के लाभ और खर्च में बडा संबंध होता है । जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों को नियमित लाभ होता रहता है , जिससे खर्च की दिक्कत नहीं आती , हर प्रकार के संबंधों का निर्वाह भी ये आसानी से कर लेते हैं। पर जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के कमजोर रहने पर मीन लग्नवालों के लाभ में कमी खर्चशक्ति को कमजोर बनाती है , बाह्य संदर्भों को कमजोर करने में सहायक होती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शनि की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में शनि सूर्य के निकट हो तो शनि को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और शनि आमने सामने हो तो शनि काफी कमजोर होता है।
ज्योतिष में सभी लग्न की कुंडलियों के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं। लेकिन ग्रह कमजोर है या मजबूत, इसका पता आंशिक तौर पर हमारे योगकारक ग्रहों का प्रभाव लेख से मालूम हो सकता है, पर ग्रहों की गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति की जानकारी के लिए हमारे केंद्र से जन्मकुंडली बनवाना आवश्यक है!