क्या ज्योतिष सच है ?

 Is astrology true in Hindi

क्या ज्योतिष सच है ?


Is astrology true in Hindi


फलित ज्योतिष विज्ञान है या अंधविश्वास , ज्योतिष शास्त्र सच है या झूठ ? इस प्रश्न का उत्तर दे पाना समाज के किसी भी वर्ग के लिए आसान नहीं है। परंपरावादी और अंधविश्वासी विचारधारा के लोग ,जो कई स्थानों पर ज्योतिष पर विश्वास करने के कारण धोखा खा चुकें हैं ,भी इस शास्त्र पर संदेह नहीं करते। सारा दोषारोपण ज्योतिषी पर ही होता है। वैज्ञानिकता से संयुक्त विचारधारा से ओत-प्रोत व्यक्ति भी किसी मुसीबत में फंसते ही समाज से छुपकर ज्योतिषियों की शरण में जाते देखे जाते हैं। ज्योतिष की इस विवादास्पद स्थिति के लिए मै सरकार ,शैक्षणिक संस्थानों एवं पत्रकारिता विभाग को दोषी मानती हूं। इन्होने आजतक ज्योतिष को न तो अंधविश्वास ही सिद्ध किया और न ही विज्ञान ?


सरकार यदि ज्योतिष को अंधविश्वास समझती तो जन्मकुंडली बनवाने या जन्मपत्री मिलवाने के काम में लगे ज्योतिषियों पर कानूनी अड़चनें आ सकती थी। यज्ञ हवन करवाने या तंत्र-मंत्र का प्रयोग करनेवाले ज्योतिषियों के कार्य में बाधाएं आ सकती थी। सभी पत्रिकाओं में राशि-फल के प्रकाशन पर रोक लगाया जा सकता था। आखिर हर प्रकार की कुरीतियों और अंधविश्वासों जैसे जुआ , मद्यपान , बाल-विवाह, सती-प्रथा आदि को समाप्त करनें में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है ,परंतु ज्योतिष पर विश्वास करनेवालों के लिए ऐसी कोई कड़ाई नहीं हुई। आखिर क्यों ? 


क्या सरकार ज्योतिष को विज्ञान समझती है ? नहीं, अगर वह इस विज्ञान समझती तो इस क्षेत्र में कार्य करनेवालों के लिए कभी-कभी किसी प्रतियोगिता, सेमिनार आदि का आयोजन होता तथा विद्वानों को पुरस्कारों से सम्मानित कर प्रोत्साहित किया जाता। परंतु आजतक ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। पत्रकारिता के क्षेत्र में देखा जाए तो लगभग सभी पत्रिकाएं यदा-कदा ज्योतिष से संबंधित लेख, इंटरव्यू , भविष्यवाणियॉ आदि निकालती रहती है पर जब आजतक इसकी वैज्ञानिकता के बारे में निष्कर्ष ही नहीं निकाला जा सका, जनता को कोई संदेश ही नहीं मिल पाया तो फिर ऐसे लेखों या समाचारों का क्या औचित्य ?


पत्रिकाओं के विभिन्न लेखों हेतु किया जानेवाला ज्योतिषियों कें चयन का तरीका ही गलत है । उनकी व्यावसायिक सफलता को उनके ज्ञान का मापदंड समझा जाता है , लेकिन वास्तव में किसी की व्यावसायिक सफलता उसकी व्यावसायिक योग्यता का परिणाम होती है ,न कि विषय-विशेष की गहरी जानकारी। इन सफल ज्योतिषियों का ध्यान फलित ज्योतिष के विकास में न होकर अपने व्यावसायिक विकास पर होता है। ऐसे व्यक्तियों द्वारा ज्योतिष विज्ञान का प्रतिनिधित्व करवाना पाठकों को कोई संदेश नहीं दें पाता है। जो ज्योतिषी ज्योतिष को विज्ञान सिद्ध कर सकें , उन्हें ही अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए या एक प्रतियोगिता में किसी व्यक्ति की जन्मतिथि, जन्मसमय और जन्मस्थान देकर सभी ज्योतिषियों से उस जन्मपत्री का विश्लेषण करवाना चाहिए । उसकी पूरी जिंदगी कें बारे में जो ज्योतिषी सटीक भविष्यवाणी कर सके उसे ही अखबारों ,पत्रिकाओं में स्थान मिलना चाहिए।


परंतु ज्योतिषियों की परीक्षा लेने के लिए कभी भी ऐसा नहीं किया गया ,फलस्वरुप ज्योतिष की गहरी जानकारी रखनेवाले समाज के सम्मुख कभी नहीं आ सके और समाज नीम-हकीम ज्योतिषियों से परेशान होता रहा। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखनेवाले कुछ लोग और कुछ संस्थाएं ऐसी है , जो ज्योतिष विज्ञान के प्रति किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। वे ज्योतिष से संबंधित बातों को सुनने में रुचि कम और उपहास में रुचि ज्यादा रखते हैं। उनके दृष्टिकोण में समन्वयवादिता की कमी भी आजतक ज्योतिष को विज्ञान नहीं सिद्ध कर पायी है।


ज्योतिष विज्ञान की वैज्ञानिकता के बारे में संशय प्रकट करते हुए यह कहा जाता है कि सौरमंडल में सूर्य स्थिर है तथा अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं, किन्तु ज्योतिष शास्त्र यह मानता है कि पृथ्वी स्थिर है और अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। जब यह परिकल्पना ही गलत है तो उसपर आधारित भविष्यवाणी कैसे सही हो सकती है ? पर बात ऐसी नहीं है । जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं , वह चलायमान होते हुए भी हमारे लिए स्थिर है , ठीक उसी प्रकार , जिस प्रकार हम किसी गाड़ी में चल रहे होते हैं , वह हमारे लिए स्थिर होती है और किसी स्टेशन पर पहुंचते ही हम कहते हैं , `अमुक शहर आ गया।´ जिस पृथ्वी में हम रहतें हैं , उसमें हम स्थिर सूर्य के ही उदय और अस्त का प्रभाव देखते हैं। इसी प्रकार अन्य आकाशीय पिंडों का भी प्रभाव हमपर पड़ता है। पृथ्वी से कोई कृत्रिम उपग्रह को किसी दूसरे ग्रह पर भेजना होता है तो पृथ्वी को स्थिर मानकर ही उसके सापेक्ष अन्य ग्रहों की दूरी निकालनी पड़ती है। जब यह सब गलत नहीं होता तो ज्योतिष में पृथ्वी को स्थिर मानते हुए उसके सापेक्ष अन्य ग्रहों की गति पर आधारित फल कैसे गलत हो सकता है ? 


ज्योतिष की वैज्ञानिकता के बारे में संशय प्रकट करते हुए दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि सौरमंडल में सूर्य तारा है , पृथ्वी, मंगल, बुध, बृहस्पति, शनि आदि ग्रह हैं तथा चंद्रमा उपग्रह है, जबकि ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रह माने जाते हैं । इसलिए इस परिकल्पना पर आधारित भविष्यवाणी महत्वहीन है। इसके उत्तर में मेरा यह कहना है कि सभी विज्ञान में एक ही शब्दों के तकनीकी अर्थ भिन्न-भिन्न हो सकते हैं । अभी विज्ञान पूरे ब्रह्मांड का अध्ययन कर रहा है। ब्रह्मांड में स्थित सभी पिंडों को स्वभावानुसार कई भागों में व्यक्त किया गया है। सभी ताराओं की तरह ही सूर्य की प्रकृति होने के कारण इसे तारा कहा गया है। सूर्य की परिक्रमा करनेवाले पिंडों को ग्रह कहा गया है। ग्रहों की परिक्रमा करनेवाले पिंडों को उपग्रह कहा गया है। 


किन्तु फलित ज्योतिष पूरे ब्रह्मांड का अध्ययन नहीं कर सिर्फ अपने सौरमंडल का ही अध्ययन करता है। सूर्य को छोड़कर अन्य ताराओं का प्रभाव पृथ्वी पर नहीं महसूस किया गया है। इसी प्रकार अन्य ग्रहों के उपग्रहों का पृथ्वी पर कोई प्रभाव नहीं देखा गया है । सूर्य, चंद्र , बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि एवं मंगल की गति और स्थिति के प्रभाव को पृथ्वी , उसके जड़-चेतन और मानव-जाति पर महसूस किया गया है। इसलिए इन सबों को ग्रह कहा जाता है। ग्रहों की इस शास्त्र में यही परिभाषा दी गयी है। इसके आधार पर इसकी वैज्ञानिकता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता।

तीसरा तर्क यह है कि ज्योतिष में राहू और केतु को भी ग्रह माना गया है , जबकि ये ग्रह नहीं हैं । ये तर्क बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। सबसे पहले यह जानकारी आवश्यक है कि राहू और केतु हैं क्या ? पृथ्वी को स्थिर मानने से पृथ्वी के चारो ओर सूर्य का एक काल्पनिक परिभ्रमण-पथ बन जाता है। पृथ्वी के चारो ओर चंद्रमा का एक परिभ्रमण पथ है ही । ये दोनो परिभ्रमण-पथ एक दूसरे को दो विन्दुओं पर काटते हैं । अतिप्राचीनकाल में ज्योतिषियों को मालूम नहीं था कि एक पिंड की छाया दूसरे पिंडों पर पड़ने से ही सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होते हैं। जब ज्योतिषियों ने सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होते देखा, तो वे इसके कारण ढूंढ़ने लगे। 


दोनो ही समय इन्होने पाया कि सूर्य, चंद्र, पृथ्वी एवं सूर्य, चंद्र के परिभ्रमण-पथ पर कटनेवाले दोनो विन्दु लम्बवत् हैं। बस उन्होने समझ लिया कि इन्हीं विन्दुओं के फलस्वरुप खास अमावस्या को सूर्य तथा पूर्णिमा की रात्रि को चंद्र आकाश से लुप्त हो जाता है। उन्होने इन विन्दुओं को महत्वपूर्ण पाकर इन विन्दुओं का नामकरण `राहू´ और `केतु´ कर दिया। इस स्थान पर उन्होने जो गल्ती की, उसका खामियाजा ज्योतिष विज्ञान अभी तक भुगत रहा है ,क्योंकि राहू और केतु कोई आकाशीय पिंड हैं ही नहीं और हमलोग ग्रहों की जिस उर्जा से भी प्रभावित हो---गुरुत्वाकर्षण, गति, किरण या विद्युत-चुम्बकीय शक्ति, राहू और केतु इनमें से किसी का भी उत्सर्जन नहीं कर पाते। इसलिए इनसे प्रभावित होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। यही कारण है कि राहू और केतु पर आधारित भविष्यवाणी सही नहीं हो पाती।

चौथा तर्क यह है कि सभी ज्योतिषियों की भविष्यवाणियों में विविधता क्यों होती है ? हम सभी जानते हैं कि कोई भी शास्त्र या विज्ञान क्यों न हो कार्य और कारण में सही संबंध स्थापित किया गया हो तो निष्कर्ष निकालने में कोई गल्ती नहीं होती। इसके विपरित यदि कार्य और कारण में संबंध भ्रामक हो तो निष्कर्ष भी भ्रमित करनेवाले होंगे। ज्योतिष विज्ञान का विकास बहुत ही प्राचीन काल में हुआ। उस काल में कोई भी शास्त्र काफी विकसित अवस्था में नहीं था।सभी शास्त्रों और विज्ञानों में नए-नए प्रयोग कर युग के साथ-साथ उनका विकास करने पर बल दिया गया , पर अफसोस की बात है कि ज्योतिष विज्ञान अभी भी वहीं है जहॉ से इसने यात्रा शुरु की थी । महर्षि जैमिनी और पराशर के द्वारा ग्रह शक्ति मापने और दशाकाल निर्धारण के जो सूत्र थे ,उसकी प्रायोगिक जॉच कर उन्हें सुधारने की दिशा में कभी कार्य नहीं किया गया। अंधविश्वास समझते हुए ज्योतिष-शास्त्र की गरिमा को जैसे-जैसे धक्का पहुंचता गया, इस विद्या का हर युग में ह्रास होता ही गया।

फलस्वरुप यह 21वीं सदी में भी घिसट-घिसटकर ही चल रहा है। ज्योतिषियों की भविष्यवाणियों में अंतर का कारण कार्य और कारण में पारस्परिक संबंध की कमी होना है। ग्रह-शक्ति निकालने के लिए मानक-सूत्र का अभाव है। कुल 10-12 सूत्र हैं ,सभी ज्योतिषी अलग अलग सूत्र को महत्वपूर्ण मानते हैं। दशाकाल निर्धारण का एक प्रामाणिक सूत्र है , पर उसमें एक साथ जातक के चार-चार दशा चलते रहतें हैं-एक महादशा, दूसरी अंतर्दशा, तीसरी प्रत्यंतर दशा और चौथी सूक्ष्म महादशा। इतने नियमों को यदि कम्प्यूटर में भी डाल दिया जाए , तो वह भी सही परिणाम नहीं दे पाता है , तो पंडितों की भविष्यवाणी में अंतर होना तो स्वाभाविक है। सभी ज्योतिषी अलग अलग दशा को महत्वपूर्ण मान लें तो सबके कथन में अंतर तो आएगा ही ।

अगला तर्क यह है कि आजकल सभी पत्रिकाओं में लग्नफल की चर्चा रहती है। एक राशि में जन्म लेनेवाले लाखों लोगों का भाग्य एक जैसा कैसे हो सकता है ? यह वास्तव में आश्चर्य की बात है , किन्तु यह सच है कि किसी ग्रह का प्रभाव एक राशि वालो पर तो नहीं , पर एक लग्न के लाखों करोड़ों लोगों पर एक जैसा ही पड़ता है। `एक जैसा फल´ से एक स्वभाव वाले फल का बोध होगा ,न कि मात्रा में समानता का । मात्रा का स्तर तो उसकी जन्मकुंडली एवं अन्य स्तर पर निर्भर करता है ,जैसे किसी खास समय किसी लग्न के लिए धन का लाभ एक मजदूर के लिए 50-100 रु का तथा एक बड़े व्यवसायी के लिए लाखों-करोड़ों का हो सकता है। लेकिन अधिकांश लोगों को अपने लग्न की जानकारी नहीं होती , वे पत्रिकाओं में निकलनेवाले राशिफल को देखकर भ्रमित होते रहते हैं।

अगला तर्क यह है कि किसी दुर्घटना में एक साथ सैकड़ों हजारो लोग मारे जाते हैं ,क्या सभी की कुंडली में ज्योतिषीय योग एक-सा होता है ? इस तर्क का यह उत्तर दिया जा सकता है कि ज्योतिष में अभी काफी कुछ शोध होना बाकी है , जिसके कारण किसी की मृत्यु की तिथि बतला पाना अभी संभव नहीं है ,पर दुर्घटनाग्रस्त होनेवालों के आश्रितों की जन्मकुंडली में कुछ कमजोरियॉ --संतान ,माता ,पिता ,भाई ,पति या पत्नी से संबंधित कष्ट अवश्य देखा गया है । किसी दुर्घटना में एक साथ इतने लोगों की मृत्यु प्रकृति की ही व्यवस्था हो सकती है वरना ड्राइवर या रेलवे कर्मचारी की गल्ती का खामियाजा उतने लोगों को क्यों भुगतना पड़ता है ,उन्हें मौत की सजा क्यों मिलती है, जो बड़े-बड़े अपराधियों को बड़े-बड़े दुष्कर्म करने के बावजूद नहीं दी जाती।

इसी तरह गणित की सुविधा के लिए किए गए आकाश के 12 काल्पनिक भागों के आधार पर भी ज्योतिष को गलत साबित करने की दलील दी जाती है। यदि इसे सही माना जाए तो आक्षांस और देशांतर रेखाओं पर आधारित भूगोल को भी गलत माना जा सकता है। आकाश के इन काल्पनिक 12 भागों की पहचान के लिए इनकें विस्तार में स्थित तारासमूहों के आधार पर किया जानेवाला नामकरण पर किया जानेवाला विवाद का भी कोई औचित्य नहीं हैं , क्योंकि आकाश के 360 डिग्री को 12 भागों में बॉट देने से अनंत तक की दूरी एक ही राशि में आ जाती है।

पूजा-पाठ या ग्रह की शांति से भाग्य को बदल दिए जाने की बात भी वैज्ञानिको के गले नहीं उतरती है। हमारे विचार से भी ऐसा कर पाना संभव नहीं है। किसी बालक के जन्म के समय की सभी ग्रहों सहित आकाशीय स्थिति के अनुसार जो जन्मकुंडली बनती है, उसके अनुसार उसके पूरे जीवन की रुपरेखा निश्चित हो जाती है , ऐसा हमने अपने अनुभव में पाया है। पूजा पाठ या ग्रह-शांति से भाग्य में बदलाव लाया जा सकता , तो इसका सर्वाधिक लाभ पंडित वर्ग के लोग ही उठाते और समाज के अन्य वर्गों की तरक्की में रुकावटें आती। लेकिन यह सत्य है कि पूजा-पाठ, यज्ञ-जाप, मंगला-मंगलीमुहूर्त्‍त आदि अवांछित तथ्यों एवं हस्‍तरेखा , हस्‍ताक्षर विज्ञान , तंत्र-मन्त्र  , जादू-टोना, भूत-प्रेत, गुण मिलान टेबल , झाडफूंक , न्‍यूमरोलोजी , फेंगसुईवास्तु, टैरो कार्ड, लाल किताब आदि ज्‍योतिष से इतर विधाओं के भी ज्‍योतिष में प्रवेश से ही ज्योतिष विज्ञान की तरक्की में बाधा पहुंची है। जन्मकुंडली में  लव मैरिज होने के संकेत या विवाह समय निर्धारण आदिको देखने के क्रम में देश , काल और परिस्थिति का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। 

ज्योतिष विज्ञान मूलत: संकेतों का विज्ञान है , यह बात न तो ज्योतिषियों को और न ही जनता को भूलनी चाहिए। किन्तु जनता ज्योतिषी को भगवान बनाकर तथा ज्योतिषी अपने भक्तों को बरगलाकर फलित ज्योतिष के विकास में बाधा पहुंचाते आ रहे हैं। हर विज्ञान में सफलता और असफलता साथ-साथ चलती है। मेडिकल साइंस को ही लें। हर समय एक-न-एक रोग डॉक्टर को रिसर्च करने को मजबूर करते हैं। किसी परिकल्पना को लेकर ही कार्य-कारण में संबंध स्थापित करने का प्रयास किया जाता है, पर सफलता पहले प्रयास में ही मिल जाती है, ऐसी बात नहीं है। अनेकानेक प्रयोग होते हैं , करोड़ों-अरबों खर्च किए जाते हैं, तब ही सफलता मिल पाती है । 

भूगर्भ-विज्ञान को ही लें, प्रारंभ में कुछ परिकल्पनाओं को लेकर ही कि यहॉ अमुक द्रब्य की खान हो सकती है , कार्य करवाया जाता था ,परंतु बहुत स्थानों पर असफलता हाथ आती थी। धीरे-धीरे इस विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि कसी भी जमीन के भूगर्भ का अध्ययन कम खर्च से ही सटीक किया जा सकता है। अंतरिक्ष में भेजने के लिए अरबों रुपए खर्च कर तैयार किए गए उपग्रह के नष्ट होने पर वैज्ञनिकों ने हार नहीं मानी। उनकी कमजोरियों पर ध्यान देकर उन्हें सुधारने का प्रयास किया गया तो अब सफलता मिल रही है। उपग्रह से प्राप्त चित्र के सापेक्ष की जानवाली मौसम की भविष्यवाणी नित्य-प्रतिदिन सुधार के क्रम में देखी जा रही है।

मानव जब-जब गल्ती करते हैं , नई-नई बातों को सीखते हैं ,तभी उनका पूरा विकास हो पाता है , परंतु ज्योतिष-शास्त्र के साथ तो बात ही उल्टी है , अधिकांश लोग तो इसे विज्ञान मानने को तैयार ही नहीं , सिर्फ खामियॉ ही गिनाते हैं और जो मानते हैं , वे अंधभक्त बने हुए हैं । यदि कोई ज्योतिषी सही भविष्यवाणी करे तो उसे प्रोत्साहन मिले न मिले ,उसके द्वारा की गयी एक भी गलत भविष्यवाणी का उसे व्यंग्यवाण सुनना पड़ता है। इसलिए अभी तक ज्योतिषी इस राह पर चलते आ रहें हैं , जहॉ चित्त भी उनकी और पट भी उनकी ही हो। यदि उसने किसी से कह दिया, `तुम्हे तो अमुक कष्ट होनेवाला है , पूजा करवा लो ,यदि उसने पूजा नहीं करवाई और कष्ट हो गया,तो ज्योतिषी की बात बिल्कुल सही। यदि पूजा करवा ली और कष्ट हो गया तो `पूजा नहीं करवाता तो पता नहीं क्या होता´ । यदि पूजा करवा ली और कष्ट नहीं हुआ तो `ज्योतिषीजी तो किल्कुल कष्ट को हरनेवाले हैं´ जैसे विचार मन में आते हैं। हर स्थिति में लाभ भले ही पंडित को हो , फलित ज्योतिष को जाने-अनजाने काफी धक्का पहुंचता आ रहा है।

किन्तु लाख व्यवधानों के बावजूद भी प्रकृति के हर चीज का विकास लगभग नियिचत होता है प्रकृति का यह नियम है कि जिस बीज को उसने पैदा किया , उसे उसकी आवश्यकता की वस्तु मिल ही जाएगी । देख-रेख नहीं होने के बावजूद प्रकृति की सारी वस्तुएं प्रकृति में विद्यमान रहती ही है। बालक जन्म लेने के बाद अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपनी मॉ पर निर्भर होता है। यदि मॉ न हों , तो पिता या परिवार के अन्य सदस्य उसका भरण-पोषण करते हैं। यदि कोई न हो , तो बालक कम उम्र में ही अपनी जवाबदेही उठाना सीख जाता है। एक पौधा भी अपने को बचाने के लिए कभी टेढ़ा हो जाता है , तो कभी झुक जाता है। लताएं मजबूत पेड़ों से लिपट कर अपनी रक्षा करती हैं । 

कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि सबकी रक्षा किसी न किसी तरह हो ही जाती है और ऐसा ही ज्योतिष शास्त्र के साथ हुआ। आज जब सभी सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं ज्योतिष विज्ञान के प्रति उपेक्षात्मक रवैया अपना रही है, सभी परंपरागत ज्योतिषी राहू , केतु और विंशोत्तरी के भ्रामक जाल में फंसकर अपने दिमाग का कोई सदुपयोग न कर पाने से तनावग्रस्त हैं , वहीं दूसरी ओर ज्योतिष विज्ञान का इस नए वैज्ञानिक युग के अनुरुप गत्यात्मक विकास हो चुका है। `गत्यात्मक ज्योतिषीय अनुसंधान केन्द्र´ द्वारा ग्रहों के गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति को निकालने के सूत्र की खोज के बाद आज ज्योतिष एक वस्तुपरक विज्ञान बन चुका है ।

जीवन में सभी ग्रहों के पड़नेवाले प्रभाव को ज्ञात करने के लिए दो वैज्ञानिक पद्धतियों `गत्यात्मक दशा पद्धति´ और `गत्यात्मक गोचर प्रणाली´ का विकास किया गया है , जिसके द्वारा जातक अपने पूरे जीवन के उतार-चढ़ाव का लेखाचित्र प्राप्त कर सकते हैं। इस दशा-पद्धति के अनुसार शरीर में स्थित सभी ग्रंथियों की तरह सभी ग्रह एक विशेष समय ही मानव को प्रभावित करते हैं। जन्म से 12 वर्ष तक की अवधि में मानव को प्रभावित करनेवाला मन का प्रतीक ग्रह चंद्रमा है , इसलिए ही बच्चे सिर्फ मन के अनुसार कार्य करतें हैं ,इसलिए अभिभावक भी खेल-खेल में ही उन्हें सारी बातें सिखलाते हैं। 12 वर्ष से 24 वर्ष तक के किशोरों को प्रभावित करनेवाला विद्या , बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक ग्रह बुध होता है, इसलिए इस उम्र में बच्चों में सीखने की उत्सुकता और क्षमता काफी होती है। 24 वर्ष से 36 वर्ष तक के युवकों को प्रभावित करनेवाला शक्ति-साहस का प्रतीक ग्रह मंगल होता है, इसलिए इस उम्र में युवक अपने शक्ति का सर्वाधिक उपयोग करते हैं । 

36 वर्ष से 48 वर्ष की उम्र तक के प्रौढ़ों को प्रभावित करनेवाला युक्तियो का ग्रह शुक्र है , इसलिए इस उम्र में अपनी युक्ति-कला का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है । 48 वर्ष से 60 वर्ष की उम्र के व्यक्ति को प्रभावित करनेवाला ग्रह समस्त सौरमंडल की उर्जा का स्रोत सूर्य है, इसलिए इस उम्र के लोगों पर अधिकाधिक जिम्मेदारियॉ होती हैं, बड़े-बड़े कार्यों के लिए उन्हें अपने तेज और धैर्य की परीक्षा देनी पड़ती है। 60 वर्ष से 72 वर्ष की उम्र को प्रभावित करनेवाला धर्म, न्याय का प्रतीक ग्रह बृहस्पति है, इसलिए यह समय सभी प्रकार के जवाबदेहियों से मुक्त होकर धार्मिक जीवन जीने का माना गया है। 72 वर्ष से 84 वर्ष तक की अतिवृद्धावस्था को प्रभावित करनेवाला सौरमंडल का दूरस्थ ग्रह शनि है। इसी प्रकार 84 से 96 तक यूरेनस , 96 से 108 तक नेपच्यून और 108 से 120 वषZ की उम्र तक प्लूटो का प्रभाव माना गया है।

इस दशा-पद्धति के अनुसार यदि पूर्णिमा के समय बच्चे का जन्म हो तो बचपन में स्वास्थ्य की मजबूती और प्यार-दुलार का वातावरण मिलने के कारण उनका मनोवैज्ञानिक विकास काफी अच्छा होता हैं। इसके विपरित, अमावस्या के समय जन्म लेनेवाले बच्चे में स्वास्थ्य या वातावरण की गड़बड़ी से मनोवैज्ञानिक विकास बाधित होते देखा गया है। बच्चे के जन्म के समय बुध ग्रह की स्थिति मजबूत हो तो विद्यार्थी जीवन में उन्हें बौद्धिक विकास के अच्छे अवसर मिलते हैं । विपरित स्थिति में बौद्धिक विकास में कठिनाई आती हैं। जन्म के समय मंगल मजबूत हो तो 24वर्ष से 36 वर्ष की उम्र तक मनोनुकूल माहौल प्रााप्त होता है। विपरीत स्थिति में जातक अपने को शक्तिहीन समझता है। 

जन्म के समय मजबूत शुक्र की स्थिति 36 वर्ष से 48 वर्ष की उम्र तक सारी जवाबदेहियों को सुचारुपूर्ण ढंग से अंजाम देती हैं, विपरीत स्थिति में , काम सुचारुपूर्ण ढंग से नहीं चल पाता है। इसी प्रकार मजबूत सूर्य 48 वर्ष से 60 वर्ष तक व्यक्ति के स्तर में काफी वृद्धि लाते हैं, किन्तु कमजोर सूर्य बड़ी असफलता प्रदान करते हैं। जन्मकाल का मजबूत बृहस्पति से व्यक्ति का अवकाश-प्राप्त के बाद का जीवन सुखद होता हैं।विपरीत स्थिति में अवकाश प्राप्‍त करने के बाद उनकी जवबदहेही खत्म नहीं हो पाती हैं। मजबूत शनि के कारण 72 वर्ष से 84 वर्ष तक के अतिवृद्ध की भी हिम्मत बनी हुई होती है, जबकि कमजोर शनि इस अवधि को बहुत कष्टप्रद बना देते हैं।इन ग्रहों का सर्वाधिक बुरा प्रभाव क्रमश: 6ठे, 18वें, 30वें, 42वें ,54वें, 66वें और 78वें वर्ष में देखा जा सकता है।इसके बाद आप समझ सकते हैं कि ज्योतिष शास्त्र सच है या झूठ ?


गत्यात्मक ज्योतिष की खोज के पश्चात् किसी व्यक्ति का भविष्य जानना असंभव तो नहीं , मुश्किल भी नहीं रह गया है , क्योंकि व्यक्ति के भविष्य को प्रभावित करने में बड़ा अंश विज्ञान के नियम का होता है , छोटा अंश ही सामाजिक , राजनीतिक , आर्थिक या पारिवारिक होता है या व्यक्ति खुद तय करता है। वास्तव में , हर कर्मयोगी आज यह मानते हैं कि कुछ कारकों पर आदमी का वश होता है , कुछ पर होकर भी नहीं होता और कुछ कुछ पर तो होता ही नहीं । व्यक्ति का एक छोटा निर्णय भी गहरे अंधे कुएं में गिरने या उंची छलांग लगाने के लिए काफी होता है। इतनी अनिश्चितता के मध्य भी अगर ज्योतिष भविष्य में झांकने की हिम्मत करता आया है तो वह उसका दुस्साहस नहीं , वरण् समय-समय पर किए गए रिसर्च के मजबूत आधार पर उसका खड़ा होना है।



'गत्यात्मक ज्योतिष' टीम से मुलाक़ात करें।

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संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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