how to read Lagna chart
Ascendant meaning in astrology in hindi
ज्योतिष में पृथ्वी को स्थित मानकर इसे केंद्र में रखकर पुरे आसमान की हर दिन बदलती हुई स्थिति का अध्ययन किया जाता है। ३६० डिग्री के गोलाकार आसमान के पूर्व से पश्चिम की और जाती हुई चौड़ी पट्टी को ३०-३० डिग्री के १२ भागों में बाँटा जाता है। ये राशियाँ मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन कहलाती हैं। लग्न के बारे मे अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक मे जाएँ!
What is lagna in astrology in hindi
किसी बालक के जन्म के समय जो राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित हो रही हो, उसे लग्न कहा जाता है। इसी लग्न के आधार पर किसी बालक की जन्मकुंडली बनती है। गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति प्राप्त करने के पूर्व से ही गत्यात्मक ज्योतिष अपने ढंग से लग्नकुण्डलियों का विश्लेषण करता रहा है, अपने अध्ययन में हमें मिला कि जिन दो भावों के अधिपति एक होते हैं, उन भावों का आपस में समबन्ध होता है। उसके बाद योगकारक ग्रहों को निकालने और उसके हिसाब से भविष्यवाणी की विधा विकसित हुई, तबतक कुछ भ्रम चल रहे थे, पर गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति के बाद जन्मकुंडली के परिणाम समझने में आश्चर्यजनक सफलता मिली।
मेष लग्न की कुंडली में (How to read lagna chart)
वृष लग्न की कुंडली में (how to read lagna kundali)
मिथुन लग्न की कुंडली में (how to read lagna chart)
आसमान के 60 डिग्री से 90 डिग्री तक के भाग का नामकरण मिथुन राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न मिथुन माना जाता है। मिथुन लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र धन भाव का स्वामी होता है और यह जातक के संसाधन , कोष और पारिवारिक स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए मिथुन लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले ये सारे संदर्भ ही होते है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर धन की मजबूत स्थिति से मिथुन लग्न के जातक का मन खुश और जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर धन की कमजोर स्थिति से इनका मन आहत होता है। इसी प्रकार मिथुन लग्न की कुंडली में अन्य ग्रहों के भावों का भी प्रभाव पड़ता है, जिसे इस लिंक में पढ़ा जा सकता है।
कर्क लग्न की कुंडली में (how to read lagna kundali)
आसमान के 90 डिग्री से 120 डिग्री तक के भाग का नामकरण कर्क राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न कर्क माना जाता है। कर्क लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र प्रथम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के शरीर , स्वास्थ्य , व्यक्तित्व , आत्विश्वास आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए कर्क लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले ये सारे संदर्भ ही होते है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर स्वास्थ्य की मजबूत स्थिति से कर्क लग्न के जातक का मन खुश और जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर स्वास्थ्य की कमजोर स्थिति से इनका मन आहत होता है। इसी प्रकार कर्क लग्न की कुंडली में अन्य ग्रहों के भावों का भी प्रभाव पड़ता है, जिसे इस लिंक में पढ़ा जा सकता है।
आसमान के 120 डिग्री से 150 डिग्री तक के भाग का नामकरण सिंह राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न सिंह माना जाता है। सिंह लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र द्वादश भाव का स्वामी होता है और यह जातक के खर्च , बाहरी संदर्भों आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए सिंह लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले संदर्भ खर्च और बाह्य संपर्क होते हैं। जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर खर्च शक्ति की मजबूत स्थिति और देशाटन वगैरह से सिंह लग्न के जातक का मन खुश और जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर इनकी कमजोर स्थिति से इनका मन आहत होता है। इसी प्रकार सिंह लग्न की कुंडली में अन्य ग्रहों के भावों का भी प्रभाव पड़ता है, जिसे इस लिंक में पढ़ा जा सकता है।
आसमान के 150 डिग्री से 180 डिग्री तक के भाग का नामकरण कन्या राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न कन्या माना जाता है। कन्या लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र एकादश भाव का स्वामी होता है और यह जातक के लाभ , लक्ष्य और मंजिल आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए कन्या लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले संदर्भ ये ही होते हैं। जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर लाभ प्राप्ति की मजबूत स्थिति से कन्या लग्न के जातक का मन खुश और जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर इनकी कमजोर स्थिति से इनका मन आहत होता है। इसी प्रकार कन्या लग्न की कुंडली में अन्य ग्रहों के भावों का भी प्रभाव पड़ता है, जिसे इस लिंक में पढ़ा जा सकता है।
आसमान के 240 डिग्री से 270 डिग्री तक के भाग का नामकरण धनु राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न धनु माना जाता है। धनु लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र अष्टम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के रूटीन और जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए धनु लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले संदर्भ ये ही होते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों की जीवनशैली सुखद होती है , रूटीन सुव्यवस्थित होता है । जबकि विपरीत स्थिति हो तो रूटीन अस्तव्यस्त और जीवनशैली कष्टकर होती है। इसी प्रकार धनु लग्न की कुंडली में अन्य ग्रहों के भावों का भी प्रभाव पड़ता है, जिसे इस लिंक में पढ़ा जा सकता है।
आसमान के 270 डिग्री से 300 डिग्री तक के भाग का नामकरण मकर राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न मकर माना जाता है। मकर लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र सप्तम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के घर गृहस्थी का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए मकर लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले संदर्भ घर गृहस्थी ही होते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों की घर गृहस्थी का माहौल सुखद होता है।जबकि विपरीत स्थिति हो तो घर गृहस्थी का माहौल कष्टकर बना होता है। इसी प्रकार मकर लग्न की कुंडली में अन्य ग्रहों के भावों का भी प्रभाव पड़ता है, जिसे इस लिंक में पढ़ा जा सकता है।
आसमान के 180 डिग्री से 210 डिग्री तक के भाग का नामकरण तुला राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न तुला माना जाता है। तुला लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र दशम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के पिता , समाज , पद प्रतिष्ठा आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए तुला लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले संदर्भ ये ही होते हैं। जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर पिता का भरपूर सुख और मन मुताबिक प्रतिष्ठा मिलने से तुला लग्न के जातक का मन खुश और जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर इनकी कमजोर स्थिति से इनका मन आहत होता है। इसी प्रकार तुला लग्न की कुंडली में अन्य ग्रहों के भावों का भी प्रभाव पड़ता है, जिसे इस लिंक में पढ़ा जा सकता है।
आसमान के 210 डिग्री से 240 डिग्री तक के भाग का नामकरण ...वृश्चिक राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न वृश्चिक माना जाता है। वृश्चिक लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र नवम् भाव का स्वामी होता है और यह जातक के भाग्य , धर्म आदि मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए वृश्चिक लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले संदर्भ ये ही होते हैं। जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर ऐसे जातक बहुत भाग्यशाली होते हैं , संयोग से इनका काम होता रहता है।भाग्य का भरपूर सुख मिलने से तुला लग्न के जातक का मन खुश और जन्मकुंडली या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर इनकी कमजोर स्थिति से इनका मन आहत होता है। इसी प्रकार वृश्चिक लग्न की कुंडली में अन्य ग्रहों के भावों का भी प्रभाव पड़ता है, जिसे इस लिंक में पढ़ा जा सकता है।
आसमान के 300 डिग्री से 330 डिग्री तक के भाग का नामकरण कुंभ राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न कुंभ माना जाता है। कुंभ लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र षष्ठ भाव का स्वामी होता है और यह जातक के प्रभाव और रोग , ऋण , शत्रु जैसे हर प्रकार के झंझट का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए कुंभ लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर प्रभावित करने वाले संदर्भ किसी प्रकार के झंझट ही होते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों के समक्ष किसी प्रकार का झंझट उपस्थित नहीं होता , जो मन को खुश रखता है। जबकि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर कई तरह के झंझट उपस्थित होकर इनके मन को दुखी करते हैं। इसी प्रकार कुम्भ लग्न की कुंडली में अन्य ग्रहों के भावों का भी प्रभाव पड़ता है, जिसे इस लिंक में पढ़ा जा सकता है।
आसमान के 3...30 डिग्री से 360 डिग्री तक के भाग का नामकरण मीन राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न मीन माना जाता है। मीन लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र पंचम भाव का स्वामी होता है और यह जातक के बुद्धि , ज्ञान , संतान पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए मीन लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर प्रभावित करने वाले संदर्भ यही होते हैं। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर ऐसे जातकों की बुद्धि तीक्ष्ण होती है , इन्हें संतान पक्ष का भरपूर सुख प्राप्त होता है , जो मन को खुश रखता है। जबकि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर बुद्धि और सूझ बूझ की कमी और संतान पक्ष के सुख में कमी इनके मन को दुखी करते हैं। इसी प्रकार मीन लग्न की कुंडली में अन्य ग्रहों के भावों का भी प्रभाव पड़ता है, जिसे इस लिंक में पढ़ा जा सकता है।
स्नातक के दौरान विशेष तौर पर 'खगोल शास्त्र' का अध्ययन करने के पश्चात फलित ज्योतिष के प्रति अध्ययन में रूचि जाने के बाद मेरे पिताजी श्री विद्या सागर महथा जी ने ज्योतिष के प्राचीन शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। फलित ज्योतिष के बहुत सारे सूत्रों को उन्होने खगोल शास्त्र के नियमों के अनुकूल पाया , पर इसके कुछ नियम इन्हें बिल्कुल नहीं जंचे। खासकर ग्रहों की शक्ति निर्धारण का सूत्र इन्हें बिल्कुल अप्रामाणिक महसूस हुआ। प्राचीन कालीन ज्योतिष की पुसत्कों में ग्रहों की शक्ति के निर्धारण के लिए स्थानबल , दिक्बल , कालबल , नैसर्गिक बल , चेष्टाबल , दृष्टिबल , आत्मकारक , योगकारक , उत्तरायण , दक्षिणायण , अंशबल , पक्षबल आदि की चर्चा की गयी है। इनसे संबंधित हर नियमों और को बारी बारी से हर कुंडलियों में जॉच की , पर कोई निष्कर्ष नहीं निकला। 'गत्यात्मक शक्ति' के सूत्र से पहले उन्होंने विभिन्न भावों और उनके अधिपतियों की शक्ति योगकारक ग्रहों को समझा, जिसे आप इस लिंक में पढ़ सकते हैं।
इस हिसाब से मेष लग्नवालों की चंद्रमा को +2 , बुध को -5 , मंगल को +4 , शुक्र को +4 , सूर्य को +6 , बृहस्पति को +7 तथा शनि को 0 अंक मिलते हैं। इसलिए यदि और कोई बडा ज्योतिषीय कारण न हो तो सुख प्राप्ति के मामलों में मेष लग्नवालों की भाग्य , खर्च और बाहरी संदर्भों की स्थिति सर्वाधिक अच्छी होती है , उसके बाद बुद्धि , ज्ञान और संतान का स्थान होता है , उसके बाद शरीर , व्यक्तित्व , स्वास्थ्य , आत्मविश्वास , जीवन शैली , धन , कोष , घर गृहस्थी और ससुराल पक्ष का वातावरण होता है , वाहन समेत हर प्रकार की संपत्ति की भी स्थिति अच्छी होती है , पिता , समाज , प्रतिष्ठा , कर्मक्षेत्र की सफलता और अन्य प्रकार के लाभ का नं उसके बाद होता है , बुध के ऋणात्मक होने से भाई , बहन बंधु बांधव और सहयोगी से संबंधित जबाबदेही या किसी प्रकार के झंझट की उपस्थिति की संभावना बनती है। इसी प्रकार अन्य लग्नवालों के गृह के फलाफल को भी समझा गया, जिसे आप इस लिंक में पढ़ सकते हैं।